
लाव - लश्कर से साथ दशहरा मैदान में पूजन करते महाराजा, मैसूर व बिहार के जंगलों से बुलावाए जाते थें हाथी
इंदौर. दशहरा मैदान में लाखों लोगों की भीड़ आज भी दशहरा उत्सव के शाही अंदाज को बयां करती है। इंदौर में यह परंपरा राजा-महाराजाओं के समय से है। होलकर राजा इसे विजय पर्व के साथ मनाते थे। 10 अक्टूबर 1864 के दशहरे का उल्लेख विरासत के तत्कालीन मालवा अखबार में मिलता है। दशहरे के दिन की सुबह महल बाड़े यानी जूने राजबाड़े में महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय के दशहरा उत्सव का वर्णन मिलता है। इस दिन महाराजा सुबह से ही शाही लाव-लश्कर के साथ होलकर रियासत के सरकारी निशान, हथियार तथा अन्य धार्मिक, पुरातन महत्व के राजकीय चिन्हों, रजत नजराना सिक्के की पूजा करते थे। शाम को विशाल जुलूस के साथ होलकर रियासत की फौज दशहरा मैदान जाती थी। यहां शमी के पेड़ की पूजा होती थी।
गौरतलब है, शमी पूजा बरसों पहले इंदौर जमींदार द्वारा की जाती थी। यह परंपरा मुगल शासन के दौर से चली आ रही थी। होलकर रियासत ने इसे राजसी उत्सव बना दिया। विजयी उत्सव में रियासत की सेना की ओर से तोपों की सलामी दी जाती थी।
दशहरा जुलूस का इंतजाम रियासत के वामन रावअन्ना के जिम्मे होता था। जूना राजबाडा के कमानी दरवाजे से हाथियों पर सवार होकर महाराजा होलकर की शाही सवारी दशहरा मैदान की ओर जाती थी। यह शाही जुलूस इंदौर के छोटे सराफे से निकलता था। संकरी गली होने के कारण सबसे पहले महाराजा का हाथी निकलता था। जिस पर दोनों ओर से पुष्प वर्षा की जाती थी। जुलूस में रियासत के सरदार, मंत्री, जमींदार, जागीरदार तथा रेसीडेंसी इंदौर में पदस्थ एजेंट टू द गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया व अंग्रेज अफसर शामिल होते थे। अंग्रेजी फौज की विशेष टुकड़ी महू से बुलाई जाती थी।
मैसूर से बुलवाए हाथी
इतिहास में होलकर महाराजाओं द्वारा दशहरा समारोह को शाही अंदाज में मनाने का जिक्र मिलता है। 14 अक्टूबर 1888 के दशहरे का जश्न कुछ खास था। महाराजा शिवाजीराव होलकर ने मैसूर तथा बिहार के जंगलों से हाथी मंगवाए और उन्हें प्रशिक्षण देकर जुलूस में शामिल किया था।
राजबाड़ा दरबार हाॅल में इत्र-पान
दशहरे की शाम खास होती थी। राजबाड़ा के दरबार हॉल में दरबार लगता था। इसमें इत्र-पान की रस्म कर रियासत के सरदारों, जागीरदारों ,जमींदारों, फौज के आला अफसर तथा सेठ-साहूकार भाग लेते थे। विशेष दरबार में तोहफे तथा नजराने के तौर पर रजत मुद्राएं भेंट की जाती थीं।
देवास में प्रदर्शनी से जश्न
देवास रियासत का दशहरा अलग अंदाज में मनाया जाता था। यहां कला प्रदर्शनी होती थी, जिसमें रियासत के कलाकार भाग लेते थे। इंदौर में चमड़े के खिलौने बनाने की कला की शुरुआत आजादी के पहले दशहरे की इसी नुमाइश से हुई थी। कला महर्षि डीडी देवलालीकर, एनएस बेंद्रे, विष्णु चिंचालकर भी इसका हिस्सा रहे। (चित्र एवं जानकारी इतिहासकार जफर अंसारी के संग्रहालय से)
फोटो - 19वीं शताब्दी के अंत का दुर्लभ चित्र इसमें दशहरे का विशेष जुलूस है।
Published on:
05 Oct 2022 03:18 pm
बड़ी खबरें
View Allइंदौर
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
