
श्रीनगर में दहशगर्दों के कब्जें में है हमारा अशियाना, दूर से ही देखकर हो जाते है खुश, अब हो गया खंडहर में तब्दील
अमरनाथ से लौटकर भूपेन्द्र सिंह @ इंदौर. जिंदगी बीत जाती है एक घर बनाने में, वो तरस नहीं खाते है आग लगाने में, ये पंक्तियां धारा 370 हटने से पहले उन कश्मीरी पंडितों के लिए बिल्कुल सटीक बैठती थी जिनके पास घर और खेत खलिहान तो थे लेकिन उन पर अपना अधिकार नहीं था ये वो दर्द था जो हर उस व्यक्ति के सामने झलक उठता था जो उनसे प्यार के दो मीठे बोल बोल लें। कश्मीरी पंडित रैना परिवार के कुछ ऐसे ही हाल है।
इसके अलावा एक कहानी और भी है उन अमन पसंद कश्मीरी मुस्लिमों की जो घाटी में शांति चाहते है। वे चाहते है कि पत्थरबाजों और दहशतगर्दों का अंत हो और फिर से कश्मीर स्वर्ग बनें। जम्मू से इंदौर लौटते वक्त ट्रेन में चलती बातचीत के सिलसिले में कश्मीरी पंडित रवि रैना और उनकी पत्नी का दर्द झलक उठा। भोपाल में रहने वाले रवि एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में पदस्थ है उनका भोपाल और जम्मू में घर है इसके अलावा मूलत वे श्रीनगर के रहने वाले है।
श्रीनगर में उनका पुश्तैनी मकान है जो कि अब दहशगर्दों के कब्जें में है। मकान अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। सामान तो क्या दहशतगर्द मकान के खिडक़ी दरवाजे तक निकालकर ले गए है। जब भी जम्मू आना होता है तो श्रीनगर के अपने मकान को दूर से देखने वे जरूर जाते है। आंखों में दर्द लिए उनकी पत्नी बोल उठी हमारे सेंव के बाग भी है जिस पर वहां के लोगों ने कब्जा कर लिया है। अब कश्मीर पहले वाला कश्मीर कभी नहीं बन पाएगा। पत्नी को ढंाढस बंधाकर पीएम मोदी पर भरोसा जताते हुए रवि कहते है कि जल्द ही कश्मीर के हालात बदलेंगे। उन्होने कहा कि कश्मीर में अलगाववादी नेता जो अभी सफेदपोश घूम रहे है उन्होने यहां खूब कत्लेआम मचाया है ऐसे लोगों पर प्रतिबंध लगना चाहिए। कश्मीर में कुछ लोग अच्छे भी है उन्हे साथ लेकर कश्मीर की सूरत बदली जा सकती है। धारा 370 और 35 ए के फैसले के बाद रैना ही नहीं उन लाखों कश्मीरी पंडितों के पुर्नवास का रास्ता भी लगभग साफ हो चुका है जो अपना सबकुछ खो चुके है।
अब्दुल के घोड़े का नाम है राजेश्वर
अमरनाथ यात्रियों को गुफा तक अपने घोड़े पर पहुंचाने वाले अब्दुल सलाम की अखरोट की खेती है लेकिन श्रद्धा के चलते वे हर साल अमरनाथ यात्रा में अपने घोड़े चलाते है कि अब्दुल भी अमन पसंद कश्मीरियों में से एक है। कुछ साल पहले एक संत ने उनके घोड़े का नाम राजेश्वर रखा था तब से घोड़े को वे इसी नाम से पुकारते है। वे कहते है कि बच्चों को कश्मीर में नौकरी नहीं मिलती है। अगर देश के अन्य राज्यों से उनकी पढ़ाई होती है तो फिर नौकरी की उम्मीद नहीं बचती। पत्थरबाजों को गलत बताते हुए कहते है कि हड़ताल और बंद में आम कश्मीरियों का ही नुकसान होता है। पत्थरबाजी करने वालों को बिना काम करें पैसा मिल जाता है। चार पत्थर मारने पर तीन सौ रूपए तक दिया जाता है।
घर पर नहीं देते आतंकियों को पनाह
सलाम ने बताया कि हम हमारे बच्चों को इनसे दूर रखते है कभी उनका सपोर्ट नहीं करते है। हमारे घर में आतंकियों को पनाह भी कभी नहीं देते। हम कश्मीर में शांति चाहते है हमारा भला भारत देश के साथ रहकर ही है। हम खाते हिंदुस्तान की है तो कभी पाकिस्तान का साथ नहीं देंगे। कश्मीरी नेताओं के बच्चें विदेशों में पढ़ते है और गरीबों के बच्चें यहां पत्थरबाजी करते है जो कि गलत है। सहीं मायने में जन्नत कश्मीरियों को नसीब नहीं हो रही है इस बात को भी अब्दुल स्वीकार करते है।
मंसूर देता है बाबा अमरनाथ को चढ़ावा
अब्दुल जैसे कई अमन पसंद कश्मीरियों की घाटी में भरमार है। पत्थरबाजों और दहशगर्दों के बीच रहकर भी ये आपसी सदभाव में जीते है। धारा 370 और 35 ए हटने के बाद ऐसे कश्मीरी जरूर खुश होंगे। अब्दुल की तरह ही मंसूर अली भी यात्रियों को पहलगाम से पवित्र गुफा की ओर ले जाने में मदद करते है। मंसूर रोज एक यात्री को कुछ न कुछ चढ़ावा बाबा अमरनाथ को चढ़ाने के लिए देते है। उनका कहना है कि इससे आपसी भाइचारा बढ़ता है।
Published on:
06 Aug 2019 12:07 pm
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