
जंगल में आग, वन विभाग खाली हाथ
अनिल धारवा
इंदौर।
बढ़ती गर्मी के साथ इंदौर जिले में पिछले दिनों बड़े पैमाने पर जंगल सुलग उठे। इससे जहां पेड़-पौधों को नुकसान हुआ, वहीं वन्य प्राणियों को भी जीवन बचाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ा। जंगलों में लगने वाली आग की पड़ताल में अब तक वन विभाग कोई कमाल नहीं दिखा पाया। पिछले महीने के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो कई छोटी-बड़े अग्नि कांड जंगलों में हो चुके हैं लेकिन अफसरों का वही रटारटाया जवाब होता है कि आग लगने के कारणों की जांच की जा रही है।
दरअसल, गर्मी में जंगलों में आग लगना आम बात है। इन अग्नि कांड के पीछे कई बार लकड़ी माफिया का हाथ भी होता है ताकि जंगल कटाई का काम आसान हो सके। पिछले 50 से 60 दिनों पर गौर करें तो छोटी-बड़ी अलग- अलग घटनाओं के आंकड़े देखे तो करीब 200 घटनाएं हो चुकी हैं। इंदौर वन मंडल में महू, चोरल और मानपुर क्षेत्र में अधिक वन क्षेत्र है। इन्हीं क्षेत्रों में सबसे अधिक आग लगती है। इसका कारण चाहे जो हो, लेकिन वन संपदा को बड़ा नुकसान होता है। वन अमले के अफसरों की लापरवाही या फिर निष्क्रियता इसकी बड़ी वजह होती है। गर्मियों की शुरुआत में पेड़ों से खूब सूखे पत्ते गिरते हैं। ये पेड़ों के आसपास ही बिखरे रहते हैं, कई बार छोटी सी चिंगारी इन पड्डाों की वजह से भीषण आग का रूप ले लेती है। जानकारों की मानें तो चोरल वन क्षेत्र में अब तक 15 से 20 बार आग लग चुकी है। पिछले दिनों लगी आग में बड़ा नुकसान भी हुआ है। इसके अलावा इंदौर, महू और मानपुर में भी यही हाल है।
छोटे-बड़े सभी पौधों को नुकसान
जानकारों का कहना है कि आग लगने से बड़े पेड़ ही नहीं, छोटे-छोटे पौधे भी नष्ट हो जाते हैं। ये भविष्य के वृक्ष होते हैं, जो आग की चपेट में दम तोड़ देते हैं। आग से सागवान जैसे बहुमूल्य पेड़ों के साथ ही नीम, अंजन, करंज, बबूल आदि पेड़ राख हो जाते हैं या झुलस जाते हैं। इनके साथ ही बड़ी संख्या में औषधीय पौधों को भी नुकसान होता है।
पौधारोपणपर करोड़ों रुपए खर्च
सूत्रों का कहना है कि वन विभाग हर साल पौधारोपण पर करोड़ों रुपए खर्च करता है। बड़े पैमाने पर वन क्षेत्रों में पौधारोपण किया जाता है, लेकिन आग की आंच इन नन्हें पौधे तक पहुंच जाती है। वन विभाग को बड़े राजस्व की हानि होती है।
अग्नि कांड की एक वजह ये भी
लकड़ी काटने वाले माफिया का भी जंगल की आग में हाथ होता है। वो आग का फायदा उठाकर पेड़ कटाई कर जंगल से आसानी से लकडिय़ां बाहर ले जाते हैं। वहीं इस आग का फायदा वन अमले को भी मिल जाता है, क्योंकि जंगल में अवैध रूप से काटे गए पेड़ों के निशान आग में खाक हो जाते हैं।
एफएसआई को नहीं पता
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को 90 प्रतिशत आग लगने के कारण अभी तक पता ही नहीं चले हंै। अधिकारियों के अनुसार जंगल में जलती बी ड़ीसिगरेट फेंकने, अतिक्रमण के उद्देश्य, मन्नत पूरी होने और महुआ बीनने के लिए लगाई जाती है। हालांकि पिछले दिनों एपीसीएफ सीएच मोहंता ने अफसरों की बैठक लेकर बार-बार लगने वाली आग के कारणों का पता किए जाने के साथ रोक के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश भी दिए थे।
Published on:
16 May 2022 11:05 am
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