
इंदौर. जीएसटी कानून में बदलाव को ले कर चल रही कवायद में हिस्सा लेते हुए देश भर के औद्योगिक व व्यापारिक संगठनों ने कानून में सुधार की मांग की है।
संगठनों का कहना है, कानूनी विसंगतियों और जटिलताओं के कारण सरकार को राजस्व का नुकसान और कारोबारियों को व्यापार करने में असुविधा हो रही है। इनकों ठीक किया जाना ही उचित होगा। देश की दो प्रतिष्ठित संस्थाएं फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज और कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज ने अनेक सुझाव दिए है। जिनमें मौजूदा कानूनों में बदलाव के प्रस्ताव है। सबसे चौंकाने वाला वाली बात एचएसएन कोड (हारमोईज्ड सिस्टम ऑफ नामीक्लेचर) की उपयोगिता पर सवाल उठाना है। दोनों संगठनों का कहना है, एक ही कोड में अनेक आयटम आती है। इनकी टैक्स की दरें अलग होने से गणना में जटिलता हो रही है। सरकार को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
दरअसल, सरकार ने जीएसटी कानून लागू करने के बाद इसे व्यावहारिक स्वरूप में लागू करने के लिए एक समग्र समीक्षा की। जिसमें कारोबारी संगठन, सीए संगठन व टैक्स प्रेक्टिशनर्स एसोसिएशनस से राय ली गई। सभी का एक ही कहना रहा, कानून में अनेक जटिलताओं के कारण कारोबार में परेशानी आ रही है, टैक्स भरने से बचने के रास्ते ढूंढे जा रहे हैं।
अन्य महत्वपूर्ण सुझाव
- बड़े कारोबारियों और उद्योगपतियों को एक सेंट्रलाईज नंबर दिया जाए। वर्तमान में कंपनियों को अलग-अलग राज्यों में नंबर लेने से परेशानी हो रही है।
- इसी तरह रिटर्न भरने के लिए भी एक व्यवस्था की ताकीद है।
- रिफंड की व्यवस्था निर्धारित नहीं है। सीजीएसटी में भी रिफंड नियमानुसार नहीं होने और एसजीएसटी में स्टेट की समस्याओं के कारणों कारोबारियों का काफी पैसा अटक गया है। जिससे बाजार में पूंजी की समस्या आ रही है।
- छोटे कारोबारियों को साफ्टवेयर से दिक्कत आ रही है। इससे इनका संचालन खर्च बढ़ गया है।
- सरकार बार-बार कर की दरों में कमी कर रही है। इससे कीमतों में एकरूपता लाने में मुश्किल है।
- एंटी प्रॉफिटरी कानून उपयोग कराते हुए यह ध्यान रखा जाए व एक गाइड लाइन तय की जाए। अन्यथा कानूनी विवाद बढ़ेंगे।
- सर्विस टैक्स की दरें पहले 25 प्रतिशत तक थी। अब बढ़ कर अचानक 18 प्रतिशत होने से परेशानी आ रही है। इसे 3 प्रतिशत कम करते हुए पूर्व के अनुसार ही रखी जाए।
सुझावों की समीक्षा
इससे पहले देश के दो बड़े औद्योगिक व व्यापारिक संगठनों के समूह से मिले सुझावों के बाद सरकार प्रारूप को बारिकी से समीक्षा कर रही है। बताया जा रहा है, पहले कानून में संशोधन 1 अप्रैल से लागू करने का विचार था, लेकिन अभी एेसा संभव नहीं हो सकेगा। फिक्की व सीआईआई ने अपने सुझावों में कानूनी विसंगतियां और उनके सरलीकरण को बताने का प्रयास किया है। कानून में लिखी बातें और उनसे हो रही व्यावहारिक दिक्कतों को बताते हुए कानून में संशोधन की मांग की है।
दिक्कत में उद्योग
संगठनों का कहना है, अनेक मामलों में डुप्लिकेसी हो रही है। जिससे बड़े उद्योग व कारोबारियों को बहुत दिक्कत आ रही है। रिफंड प्रणाली के कारण आ रही पूंजीगत परेशानी का भी उल्लेख किया गया है। सुझावों में एचएसएन कोड की विसंगति को सुधारने पर जोर दिया गया है। सरकार ने एक कोड में अनेक वस्तुओं को रखा है। जबकि इन पर टैक्स की दरें अलग-अलग है। इसके साथ ही कुछ एेसी भी वस्तुएं भी है, जो दो अलग-अलग कोड में है, जिन पर कर की दरों में भी बड़ा अंतर है।
Published on:
12 Mar 2018 05:58 pm
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