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आश्चर्य ! भारत में 600 किमी का सफर सिर्फ 30 मिनट में

क्या है हायपरलूम, हवाई जहाज की रफ्तार से भी तेज दौडऩे वाली हायपरलूप कैप्सूल ट्रेन से सपना हो सकता है साकार

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इंदौर

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Amit Mandloi

Feb 25, 2018

science innovation

आरआर कैट में दो दिनी विज्ञान दिवस समारोह : पहले दिन 1500 से ज्यादा विद्यार्थियों ने जाने लैटेस्ट टेक्नोलॉजिकल इन्वेंशंस

इंदौर. हवाई जहाज की रफ्तार से भी तेज दौडऩे वाली हायपरलूप कैप्सूल ट्रेन अभी जमीन पर भले नहीं उतरी हो, लेकिन शहर के स्कूल स्टूडेंट्स को इसका लाइव मॉडल देखने का सुनहरा मौका मिल गया। राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र
(आरआरकैट) में दो दिनी नेशनल साइंस डे की शुरुआत शनिवार से हुई। इसी के तहत संस्थान ने अपने अनुसंधान व प्रोजेक्ट्स की प्रदर्शनी लगाई थी। सिंक्रोट्रॉन विकिरण स्त्रोत, इंडस १ व इंडस २, लेजर और क्रायोजेनिक्स प्रयोगशालाएं दिखाई, लेकिन १५०० से ज्यादा स्टूडेंट्स को मैग्नेट टेक्नोलॉजी डिविजन ने सबसे ज्यादा रोमांचित किया। यहां हायपरलूप ट्रेन, बुलेट ट्रेन, ६०० किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौडऩे वाली सुपर कंडिक्टव मेगलेव ट्रेन के वर्र्किंग मॉडल दिखाए गए। इनमें से अभी तक एक भी ट्रेन भारत में नहीं दौड़ पाई है। कैट अफसरों के मुताबिक स्वदेशी तकनीक से बने इन मॉडल्स के आधार पर ट्रेन बनाई गई तो इनकी स्पीड ३०० से १२०० किमी प्रति घंटा तक जा सकती है। कैट डायरेक्टर डॉ. पीए नाइक ने बताया कि जापान में ६०० किमी प्रति घंटा से चलने वाली सुपर कंडक्टिव मेगलेव ट्रेन का मॉडल भी तैयार किया है। ये पूरी तरह हवा में रहती है। स्ट्रेट, अप, डाउन, बैंड, अपोजिट डायरेक्शन में भी चल सकती है।

हायरपरलूप : विशाल पिल्लर्स पर पारदर्शी ट्यूब
मुंबई से पुणे से बीच प्रस्तावित हाइपरलूप ट्रेन का मॉडल प्रस्तुत किया गया। ये ट्रेन चुंबकीय शक्ति पर आधारित तकनीक है। इसमें विशाल पिल्लर्स पर पारदर्शी ट्यूब (वैक्यूम) बिछाई जाती है। इसके अंदर बुलेट ट्रेन जैसी लंबी सिंगल बोगी हवा में तैरती हुई चलती है। इसकी स्पीड 1200 किमी प्रति घंटा से भी अधिक हो सकती है। इंदौर से मुंबई का सफर आधे घंटे में ही तय हो जाएगा।

मैग्लेव ट्रेन : पटरी और ट्रेन में रहती है 40 मिमी का गैप
प्रदर्शनी के दौरान स्टूडेंट्स को सुपर कंडक्टिंग मैग्लेव ट्रेन का ४०० किलो का वर्र्किंग मॉडल दिखाया। इसे पूरी तरह कैट में ही डिजाइन और डवलप किया गया है। एक्सलरेटर मैग्नेट टेक्नोलॉजी डिवीजन के साइंटिफिक ऑफिसर आरएस शिंदे ने बताया कि सुपर मैग्लेव ट्रेन में सुपर कंडक्टर, बेरियम कॉपरऑक्साइड को चुंबकीय फील्ड की मौजूदगी में तरल नाइट्रोजन में माइनस १८० डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है। ठंडा होते ही ये सुपर पेरा मैग्नेट बन जाता है। पटरी पर लगी क्वाइल इसे मोशन देती है। चार हजार न्यूटोन का लेविटेशनल फोर्स बनता है। दौड़ते समय पटरी और टे्रन के बीच में ४० मिमी का गैप रहता है। इससे भविष्य की बुलेट ट्रेन डिजाइन करने में मदद मिल सकती है।

आज होगा समापन
स्टूडेंट्स ने इसके अलावा कैट द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित किए गए कई इनोवेशंस देखे। उन्हें विशेषज्ञों ने आसान भाषा में इनके निर्माण और तकनीक को समझाया। डॉ. नाइक ने बताया कि समापन रविवार को होगा। इसमें कॉलेज स्टूडेंट्स, सामाजिक संगठन सदस्यों को प्रयोगशालाओं में भ्रमण करवाकर प्रदर्शनियां दिखाई जाएगी।