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इंदौर का पहला मास्टर प्लान लागू करें तो नदी हो साफ, बढ़े हरियाली

एनजीटी भी दे चुका आदेश, लेकिन निगम के अफसर मानने को नहीं तैयार

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इंदौर का पहला मास्टर प्लान लागू करें तो नदी हो साफ, बढ़े हरियाली

इंदौर का पहला मास्टर प्लान लागू करें तो नदी हो साफ, बढ़े हरियाली

इंदौर. कान्ह-सरस्वती नदी की सफाई पर प्रशासन द्वारा 1157 करोड़ खर्च करने के बाद भी नदी को प्रदूषित घोषित किया गया है। जबकि, नदी सफाई के साथ शहर में ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने का तरीका 100 साल पहले ही तैयार हो चुका है। लगभग 50 साल पहले तक इस पर काम भी होता रहा। अब भी इसकी जरूरत है, लेकिन नगर निगम के अफसर मानने को तैयार नहीं हैं। ये तरीका 1918 में बने शहर के पहले मास्टर प्लान में बताया गया है। होलकर शासकों के समय स्कॉटलैंड के सिटी आर्किटेक्ट पेट्रिक गिडिज ने इंदौर का मास्टर प्लान तैयार किया था। इसमें इंदौर के बीच से बहने वाली नदी और हरियाली को जोड़ा गया था, ताकि शहर में हरियाली के साथ नदी भी प्रवाहित होती रहे।
1918 के मास्टर प्लान में शहर की सीमा काफी कम थी। छावनी से शुरू होकर स्नेहलतागंज और रीगल से अंतिम चौराहे के बीच शहर खत्म हो जाता था। वर्तमान शहर का एक तिहाई होने के बाद भी इसके 25 फीसदी हिस्से में हरियाली थी। उस मास्टर प्लान में कान्ह और सरस्वती नदी के दोनों किनारों पर 30 मीटर के हिस्से को सघन हरा-भरा क्षेत्र घोषित किया गया था। इसके अनुसार नदी के दोनों किनारों पर पौधरोपण किया गया था। इनमें से कई पेड़ अब भी हैं। शहर में उद्यानों के अलावा लगभग 20 किलोमीटर से भी लंबा हिस्सा सघन हरा-भरा था, जो शहर के ऑक्सीजन लेवल को संतुलित रखता था। नदी में भी पूरे साल पानी रहता था। दरअसल, ये पेड़ बारिश का पानी अवशोषित कर लेते थे और ग्रीष्म ऋतु में उसमें से पानी रिसकर नदी में जाता था। जिस तरह नर्मदा के आसपास के जंगल इस नदी को जिंदा रखते हैं, उसी तरह कान्ह में भी पानी बना रहता था।
एनजीटी ने भी दिए आदेश
कान्ह-सरस्वती की सफाई के इसी फार्मूले को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने भी सही माना था। निगम को नदी के दोनों किनारों पर 30-30 मीटर तक सघन हरित क्षेत्र घोषित करते हुए पेड़ प्रजाति के पौधे लगाने के लिए निर्देश दिए थे, लेकिन निगम ने आज तक इसका पालन नहीं किया।
कई जगह हुए निर्माण
वर्तमान में नदी के किनारों से हरियाली लगभग गायब हो गई है। सभी जगह नदी के किनारों पर बिल्डिंग, मार्केट, घर बन गए हैं। इनकी गंदगी सीधे नदी में जा रही है। इनमें निगम के भी कई बाजार शामिल हैं। 8 साल पहले एनजीटी ने इन्हें हटाने के लिए कहा है, लेकिन नगर निगम न्यायाधिकरण के इस आदेश को भी नहीं मान रहा है।
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मैं कई बार इस मुद्दे पर अधिकारियों को लिख चुका हूं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। नए-नए तरीकों से पैसा बर्बाद किया जा रहा है।
किशोर कोडवानी, एनजीटी में याचिकाकर्ता