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18 महापौर छवि साफ, 5 पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप

इंदौर : अब तक के 23 महापौरों का कार्यकाल

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इंदौर

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Ramesh Vaidh

Dec 13, 2020

18 महापौर छवि साफ, 5 पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप

नगर निगम

इंदौर. शहर में नगरीय निकायों के चुनावों का बिगुल बजने के साथ ही इंदौर के 24वें महापौर के नाते नगर निगम की कमान कौन संभालेगा, इसको लेकर भी चर्चा होना शुरू हो गई है। इंदौर के प्रथम नागरिक के तौर पर अभी तक जो 23 महापौर रहे उनमें कई ऐसे थे जिनकी छवि पूरी तरह से बेदाग रही, लेकिन कुछ महापौर के दामन पर भ्रष्टाचार के दाग भी लगे। महापौरों के खिलाफ लोकायुक्त ने न सिर्फ केस दर्ज किए बल्कि चालान भी कोर्ट में पेश किए।
90 के दशक के पहले इंदौर में रहे 18 महापौर में से अधिकांश महापौर ऐसे हैं, जिनके नाम भी शहर के लोगों को याद नहीं हैं। इंदौर में मिल मैनेजर से लेकर सेंव-परमल की दुकान चलाने वाले, स्विमिंग ट्रेनर तक ने महापौर की कुर्सी संभाली, लेकिन दामन पर किसी तरह का दाग नहीं लगा। पहले पार्षद चुने गए और फिर पार्षदों के जरिए चुने गए इन महापौरों में से अधिकांश ऐसे थे जिन पर कोई दाग नहीं लगा। हालांकि 90 के दशक के बाद में अभी तक बने पांच महापौरों के कार्यकाल में जहां निगम का बजट 1 हजार करोड़ से बढक़र 5 हजार करोड़ तक पहुंच गया। वहीं इन महापौर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ ही लोकायुक्त में शिकायतें तक हुई।
ये रहे बेदाग
ईश्वरचंद जैन, पुरषोत्तम विजय, प्रभाकर अडसूले, बालकृष्ण गौहर, सरदार शेरसिंह, बीबी पुरोहित, आरएम जुत्शी, एनके शुक्ला, भंवरसिंह भंडारी, लक्ष्मणसिंह चौहान, लक्ष्मीशंकर शुक्ला, चांदमल गुप्ता, राजेंद्र धारकर, लालचंद मित्तल, नारायणराव धर्म, श्रीवल्लभ शर्मा के नाम शामिल हैं। भंडारी, इंदौर की होप टेक्सटाइल मिल के जनरल मैनेजर थे। वहीं लक्ष्मणसिंह चौहान तैराक थे। वे महापौर के पद से हटने के बाद भी लोगों को तैराकी के गुर सिखाते रहे। इसी तरह से पुरषोत्तम विजय जो अखबार के मालिक थे, वे अखबार की दुनिया में लौट गए। वहीं ट्रांसपोर्टर रहे सरदार शेरसिंह भी पद से हटने के बाद अपने आखिरी समय तक ट्रांसपोर्टर के तौर पर ही काम करते रहे। लक्ष्मीशंकर शुक्ला पद से हटने के बाद भी वकालत करते रहे। वहीं सराफे की दुकान की गादी से इंदौर के महापौर की कुर्सी तक पहुंचने वाले श्रीवल्लभ शर्मा भी पद से हटने के बाद दोबारा सराफे की दुकान पर बैठने लगे। वहीं इंदौर महापौर की कुर्सी दो बार संभालने वाले चांदमल गुप्ता की छावनी में सेंव-परमल की दुकान थी। वे महापौर पद से हटने के बाद भी इसी दुकान पर बैठते रहे और यहीं से अपना जीवन यापन करते रहे।

इन पर लगे आरोप
सुरेश सेठ (22-4-1969 से 9-7-1970)
सबसे पहले किसी महापौर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो वे थे सुरेश सेठ। सेठ पर इंदौर में स्ट्रीट लाइट लगाने के नाम पर घोटाला करने के साथ ही शहर आने वाले गणमान्य लोगों के लिए 25 हजार रुपए की कार बेवजह खरीदने और जनता के पैसों का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था। सेठ ने इसके बाद तुरंत ही इस्तीफा दे दिया था।
मधुकर वर्मा (5-1-1995 से 4-1-2000)
8 साल के प्रशासक काल के बाद 1995 में महापौर की कुर्सी संभालने वाले वर्मा पर नगर निगम में गलत तरीके से कर्मचारियों की भर्ती करने का आरोप लगा था। ये मामला लोकायुक्त तक पहुंचा था, जिसमें उनके और उनकी परिषद के खिलाफ लोकायुक्त ने कोर्ट में चालान भी पेश किया था।
कैलाश विजयवर्गीय (5-1-2000 से 4-1-2005)
इंदौर महापौर रहते सबसे ज्यादा विवादास्पद और भ्रष्टाचार के आरोप विजयवर्गीय पर ही लगे। 2000 में कुर्सी संभालने के बाद उन पर मेघदूत घोटाला, पेंशन घोटाला, नकली पेड खरीदी कांड, सुगनीदेवी कॉलेज की जमीन नंदा नगर संस्था को गलत तरीके से अलॉट करने, कई फर्जी लोगों को नौकरी पर रखने जैसे कई बड़े घोटालों के आरोप लगे। इसमें कुछ मामलों में लोकायुक्त की जांच भी हुई। पेंशन घोटाले के लिए तो सरकार ने जैन आयोग का गठन कर उसकी जांच करवाई थी।
डॉ. उमाशशि शर्मा (5-1-2005 से 5-1-2010)
इंदौर की पहली महिला महापौर के रूप में 2005 में निगम की कमान संभालने वाली डॉ. शर्मा का कार्यकाल भी विवादों में ही घिरा रहा। उन पर यशवंत सागर से निकले पाइपों को बेचने से लेकर उद्यानों को विकसित करने के नाम पर गड़बड़ी, कर्मचारियों के लिए बीमा पॉलिसी, रवींद्र नाट्यगृह को एक कंपनी को देने के मामले कोर्ट में गए थे।
कृष्णमुरारी मोघे (6-1-2010 से 10-1-2015)
मोघे के कार्यकाल में इंदौर नगर निगम में हुए कचरे के नाम पर पत्थरों की तुलाई कर बिल बनाकर उसका भुगतान करने का मामला सामने आया था। वहीं काम कराने के नाम पर फर्जी बिल बनाने और उनका भुगतान कराने का मामला भी सामने आया था। इस मामले में खुद निगम ने ही पुलिस को शिकायत की थी। इसके अलावा 50 करोड़ के फर्जी बिलों के भुगतान का केस भी पुलिस तक गया था। यातायात घोटाला और हिना पैलेस कॉलोनी के नाम पर बिल्डरों की जमीन को वैध करने का मामला सामने आया।
मालिनी गौड़ (20-2-2015 से 19-2-2020)
डामरीकरण और बगैर टेंडर अतिरिक्त स्वीकृति के नाम पर करोड़ों रुपए का भुगतान करने का मामला लोकायुक्त की जांच में चल रहा है। इसके अलावा 80 करोड़ का काम नहीं कर पाने वाली कंपनी को 280 करोड़ का काम का टेंडर देना और हाई कोर्ट की अवमानना करते हुए 21 जोनल कार्यालय न बनाने का मामला भी प्रमुख भी है।
भाजपा : पन्ने के स्तर पर तैयारी शुरू
महापौर के पद का आरक्षण होने के साथ ही भाजपा ने तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी हैं। भाजपा ने वार्ड स्तर पर मतदाता सूचियों की जांच का काम शुरू कराया है। भाजपा ने पन्ना प्रमुखों को उनके क्षेत्र के मतदाताओं के नामों की जांच करने के साथ ही वहां पर नए मतदाताओं की स्थिति की भी जांच शुरू करा दी है। भाजपा के मंडल स्तर पर इसकी तैयारियां जोर-शोर से चल रही है।
कांग्रेस : जिम्मेदारी ही तय नहीं कर पा रहे
वहीं निगम चुनावों के लिए कांग्रेस वार्ड स्तर पर तैयारियों को शुरू कराने के लिए किसी एक नेता का नाम ही तय नहीं कर पा रही है। कांग्रेस में मतदाता सूचियां ही अभी तक दावेदारों या ब्लॉक अध्यक्षों तक नहीं पहुंचा पाई हैं, जबकि वार्ड अध्यक्षों के जरिए मतदाता सूचियों की जांच का काम कराए जाने के लिए प्रदेश कांग्रेस की ओर से पहले ही निर्देश मिल चुके हैं, लेकिन वार्ड अध्यक्षों तक ये सूची ही अभी तक नहीं पहुंच पाई है।