
इंदौर- संथाली, बोडो, मैथिली, मणिपुरी, कोंकणी या कश्मीरी ये एेसी भाषाएं हैं जिनकी ध्वनि तक से हम हिन्दी वाले अनजान हैं पर इन भाषाओं में जब कविता की धारा बही तो समझ में आई उन शब्दों की संवेदनाएं। मंगलवार की शाम ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि सम्मेलन में शहर के कविताप्रेमियों को देश की संवैधानिक दर्जा प्राप्त 22 भाषाओं के कवियों को सुनने का मौका मिला। इन कविताओं में धान के खेत, नदियों का बहाव, पक्षियों की चहचहाहट, स्त्री का दर्द, पिता का प्रेम, बुढ़ापे का अकेलापन, राजनीति के पेंच से लेकर आमआदमी की जिजीविषा तक कई विषय थे।
ये कवि सम्मेलन कुछ अलग यूं था कि इसमें जब मूल कवि कवितापाठ कर रहे थे तो श्रोता उसके संवेगों से अपरिचित होकर चुपचाप बैठे थे, लेकिन जब शब्दों की संवेदनाएं अनुवाद में ढलतीं तो तालियां बज उठतीं और उन्हें सुन कर कवि भी रोमांचित हो जाते। कुछ अनुवादकों ने न केवल सुंदर अनुवाद किया बल्कि उन्हें बेहतर वॉइस मॉडयुलेशन के साथ पढ़ा भी। हालांकि कई कविताएं कमजोर भी थीं और कई अनुवाद भी सामान्य थे।
बचपन की यादें
असमिया के युवा कवि मृदुल होलोई ने बचपन के गांव में बिछड़े दोस्त को कुछ इस तरह याद किया।
चटाई पर पसरी धान पर लुढक़ती फिरती दोपहरी उस जमाने की
सिर्फ पथरीली सडक़ से सांस बदले बगैर दो लडक़े दौड़ कर जाने वाले हम नहीं हमारे जैसे
हमारी उस जमाने की बगिया में एक पंखुड़ी पुकारती है
दुपहरी की भर्राई अवाज और मेरे सीने राह बनाने वाली तेरी आवाज तू छोड़ गया है यहीं कहीं।
इसके बाद सुंदर कविता सुनाई असम से आई बोडो कवियत्री अंजु नारजरी ने। उनकी अनुवादक दिल्ली की सुजाता ने इस अनुवाद को बेहद संवेदनशीलता के साथ पढ़ा।
मत पूछो मुझ से कैसी हूं मैं....
क्या फर्क पड़ता है अगर मैं जिंदा हूं मृत की तरह ख्वाबों की लाश को गले लगाए हुए या फिर आत्मा के रक्त से रंजित जल में डूबी हुई/ ना मत पूछो कि क्या जिंदगी का क्या हंसी इंद्रधनुष तूफान में ध्वस्त हो गया या या क्या सुनामी में डूब गया मेरा आधा हृदय, मत पूछो मुझसे इनके बारे में कि मैं क्यों नहीं उड़ सकती पंछियों के क्यों नहीं हो सकती शामिल तारों के कोरस में साथ मत झपटो मेरे दुखांे पर ये सबका दुख है ये सारी दुनिया का दुख है ये सारी औरतों का दुख है। सीता द्रोपदी, उर्मिला, जयमति, अनुपमा, तस्लीमा और कमला का। एक पुरातन दुख है ये धरती जितना पुराना आदिम प्रेम, भावनाओं और क्षमाशीलता जैसा/ जानने की मत करो कोशिश ये आसमान से गिरी बिजली है एक मुस्कान जो शरीर पर नहीं आत्मा पर निशान बना देती है सिर्फ अंदाज लगाने की करो कोशिश...
अवाम थकने लगा तालियां बजाते हुए
रामपुर से आए उर्दू शायर अजहर इनायती ने खूब तालियां पाईं, उनके लिए अनुवादक की जरूरत भी नही थी। उनके कुछ शेर बहुत पसंद किए गए।
वो ताजादम है नए शोबदे दिखाते हुए अवाम थकने लगे तालियां बजाते हुए
संभल के चलने का सारा गुरूर टूट गया एक एेसी बात कही उसने लड़खड़ाते हुए
खुद अपने पांव भी लोगों ने कर दिए जख्मी हमारी राहों में कांटे यहां बिछाते हुए
इस आदमी ने बहुत कहकहे लगाए है ये आदमी जो लरजता है मुस्कुराते हुए
हुआ उजाला तो हम उनके नाम भूल गए जो बुझ गए हैं चरागों की लौ बढ़ाते हुए।
कोकणी कवि विंसी काद्रुस ने मोमबत्ती को जीवन दर्शन से जोड़ा तो तमिल कवियत्री आर तमिलरसी ने कुर्सियों पर कुछ यूं कहा
भले ही चार पैर हों इनके,
पर पैसे पकडऩे के नूतन ढंग से अपना हाथ बढ़ाती हैं कुर्सियां...।
तेलुगु कवि प्रसाद मूर्ति ने बेटी के लिए पिता के प्रेम को व्यक्त किया पंजाबी के गुरुचरण सिंह ने सपनों की बात कही।
Published on:
17 Jan 2018 04:54 pm
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