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जानिए कैसे साधना ने इंदौर को बनाया साहित्य का रत्न 

इंदौर की साहित्य परंपरा को कई दिग्गजों ने अपनी शब्द साधना से सींचा है। पढ़िए गेस्ट राइटर सरोज कुमार की कलम से।

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Shruti Agrawal

Dec 16, 2016

full history of indore

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इंदौर। इंदौर की साहित्य परंपरा को कई दिग्गजों ने अपनी शब्द साधना से सींचा है। इनमें हर विधा के लेखक, कवि, व्यंग्यकार व शब्द शिल्पी शामिल हैं। प्रयोगों की इस धरती पर रचनाकर्म में भी अभिनव प्रयोग हुए। 100 बरस पुरानी संस्थाएं इस यशस्वी यात्रा की गवाही देती हैं। उनके सान्निध्य में साहित्य की यह धारा पूरे वेग से बह रही है।

हिन्दी साहित्य में यूं तो इंदौर का नाम इलाहाबाद, लखनऊ, पटना और दिल्ली की तरह गाढ़ी रेखाओं में अंकित करने जैसा उल्लेखनीय नहीं है पर इनके बाद इंदौर का नाम लिया जा सकता है। यहां लिखने-पढऩे का सिलसिला पुराना है। सौ बरस पुरानी साहित्यिक संस्थाएं यहां हैं।



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इंदौर में 40 के दशक में कथाकार सोजतिया जी के एक आना दो आना उपन्यास बहुत लोकप्रिय थे। ये उपन्यास उनकी एक आना या दो आना कीमत के नाम से ही मशहूर हुए। अब इन उपन्यासों की कोई प्रति उनके परिवार के पास भी नहीं है। हिन्दी साहित्यिक समिति की पत्रिका वीणा में बेचन शर्मा उग्र थे पर इंदौर के साहित्यिक परिदृश्य से ज्यादा जुड़े नहीं। 50 के दशक में जब हरिकृष्ण प्रेमी इंदौर आकर बसे तब साहित्यिक हलचलों में गर्माहट आई।

डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन ने बदला माहौल

50 के दशक के मध्य में डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के होलकर कॉलेज में आ जाने से साहित्यकारों में नया उत्साह जन्मा। वे चार साल यहां रहे। इसी दौरान उन्होंने 1956 में होलकर कॉलेज के मैदान में शहर में पहला विशाल पैमाने का कवि सम्मेलन आयोजित किया। इसमें हरिवंशराय बच्चन, गिरिजाकुमार माथुर, नरेश मेहता, वीरेन्द्र मिश्र जैसे दिग्गजों ने रचनाएं पढ़ी थीं। लगभग इन्हीें वर्षों में कथाकार रमेश बख्शी और व्यंग्यकार शरद जोश खूब लिख रहे थे और इंदौर के अखबारों में साहित्य संपादन भी कर रहे थे।


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नई कविता से परिचय

50 के दशक में इंदौर अंचल की काव्य रुचियां परंपरागत थीं। प्रयोगवाद और नई कविता का प्रभाव यहां देर से आया। नई कविता से परिचय करवाया कवि अनिल कुमार और मनमोहन मदारिया ने, जो नौकरी के कारण 60 के दशक में इंदौर आए। शहर में राहुल बारपुते और राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी जैसे पत्रकार-संपादक थे जो साहित्यकार नहीं थे लेकिन उनके साहित्यानुराग के कारण अखबारों के साहित्यिक परिशिष्टों ने स्थानीय साहित्यकारों को पहचान दी। नेरश मेहता भी यहां एक अखबार में बतौर संपादक आए थे और यहीं रहते हुए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। प्रभाकर माचवे भी संपादक के रूप में यहां रहे।

पहचान बने साहित्यकार

60 के दशक में लेखन प्रारंभ करने वालों में रमेश शर्मा मेहबूब, चंद्रकांत देवताले, चंद्रसेन विराट, सतीश दुबे, सूर्यकांत नागर, सत्यनारायण सत्तन, शरद पगारे ने साहित्य में पहचान बनाई। और भी कई नाम हैं जिनमे श्याम सुंदर व्यास, लीला रूपायन, कृष्णा अग्निहोत्री, चंद्रशेखर दुबे, श्याम व्यास, विलास गुप्ते, रामकृष्ण सेामानी, जगदीश डल्लारा शामिल हैं।

जारी है सिलसिला

और भी साहित्यकार हैं जो अभी भी लिख रहे हैं, इनमें प्रभु जोशी, आशुतोष दुबे, जवाहर चौधरी, कृष्णकांत निलोसे, राजकुमार कुंभज, सदाशिव कौतुक, किसलय पंचोली, ब्रजेश कानूनगो, रश्मि रमानी, कनुप्रिया, संदीप श्रोत्रीय, राजेन्द्र मिश्र, प्रदीप मिश्र, प्रदीप कांत, सत्यनारायण पटेल, मीनाक्षी स्वामी, नियति सप्रे, पदमा सिंह के नाम लिए जा सकते हैं। हिन्दी के साथ मालवी में नरेन्द्र सिंह तोमर, आनंदराव दुबे और नरहरि पटेल ने भी खूब रचनाएं लिखीं। कुछ साहित्यकार देवास में रहे लेकिन इंदौर से जुड़ाव रहा। इनमें कवि नईम, कथाकार प्रकाशकांत और जीवन सिंह ठाकुर शामिल हैं।

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बाहर जाकर नाम कमाया

कुछ एेसे साहित्यकार भी हुए हैं जिन्होंने लिखना तो इंदौर में शुरू किया, लेकिन बाद में वे मुंबई या दिल्ली में बस गए। इनमें ममता कालिया और श्रीनिवास जोशी शामिल हैं। शामू संन्यासी भी इंदौर से जाकर इलाहाबाद में बस गए और नई कहानी के संपादक बने।

साहित्य पत्रिकाएं

वीणा पत्रिका तो पिछले 90 बरस से प्रकाशित हो रही है। इधर राकेश शर्मा के संपादन में बहुरंग पत्रिका और जितेन्द्र चौहान के संपादन में गुंजन अच्छी पत्रिकाएं हैं।

आकाशवाणी में आए साहित्यकार

पचास के दशक में ही इंदौर में आकाशवाणी केंद्र खुला और तब उसमें प्रभागचंद्र शर्मा, इलाचंद्र जोशी, बलवंत सिंह और वीरेन्द्र मिश्र व सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे साहित्यकार यहां कार्यरत रहे। उन्हीें दिनों शहर में रंगकर्म की गतिविधियां भी विकसित हुईं। पहले इप्टा, बाद में नाट्यभारती ने यहां कई हिन्दी नाटक किए। बाद में ये सिलसिला यवनिका, प्रयोग, इंदौर थिएटर ने आगे बढ़ाया और अब तो यहां 20 से ज्यादा रंग संस्थाएं हैं।

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