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हर नाकामयाबी सिखाती है जीने का नया अंदाज- ज्योति रेड्डी

जिंदगी में कभी समझौता न करें, ये आपको आगे बढऩे से रोकते हैं।

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jyothi reddy

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इंदौर. आत्मा और दिमाग के बीच गहरा रिश्ता होता है। शादी के बाद जब मैं घर की जिम्मेदारियों के चलते अलग-अलग काम कर रही थी तो हर दिन भीतर से एक आवाज आती थी कि तुम इसके लिए नहीं बनी हो, तुम्हें दायरों से हटकर कुछ करना है। उसी वक्त परिवार के भरण-पोषण की चुनौती भी मेरे सामने थी। चुनौतियों ने मुझे जीना सिखाया है। हर असफलता एक अच्छा अनुभव होती है। आज खुशी होती है कि मैं उन गलियों में एक मददगार के रूप में जाती हूं जहां से जिंदगी की लड़ाई शुरू की थी। ये बात शनिवार को होटल रेडिसन में फिक्की फ्लो के कार्यक्रम ‘टेक चार्ज ऑफ योर ऑन डेस्टिनी’ में ज्योति रेड्डी ने कही। ज्योति ने अपने सफर की शुरुआत तैलंगाना में एक मजदूर के रूप में की। उन्होंने दूसरे के खेतों में 5 रुपए में मजदूरी से की और पहली नौकरी में 120 रुपए वेतन मिला। आज वह मिलेनियर के रूप में पहचान बना चुकी हैं। वे यूएस की कंपनी में सॉफ्टवेयर सॉल्युशन की सीईओ हैं।

रिवेंज, ईगो और एंगर है पॉजिटिव
ज्योति ने कहा कि कई बार एंगर, ईगो और रिवेंज जैसे शब्द नेगेटिव नहीं लगते। मैंने टाइम से रिवेंज लिया। जिस अनाथाश्रम में तकलीफ के दिन गुजारने पड़े वहां अब मदद करती हूं। मैंने गुस्सा दिखाया कि आखिर क्यों मेरे पास वो सब नहीं है जो एक बच्ची को मिलना चाहिए। बेटियों को उसी स्कूल में एडमिशन दिलाया जिसका सपना देखती थी। होस्टल के खाने में कीड़ा निकलने पर भूखा रहना पसंद किया।

मां की मौत का झूठ था पीड़ादायी
गरीबी की वजह से पिता ने मुझे और बहन को अनाथाश्रम में यह झूठ बोलकर दाखिला दिलाया कि हमारी मां नहीं है। मेरी मां जीवित थी, लेकिन सब उनकी शांति के लिए प्रार्थना करते थे जो असहनीय था। मैंने पांच साल में दो या तीन बार मां को देखा। साल 1994 में एक गांव में गवर्नमेंट टीचर की जॉब मिली, लेकिन ट्रांसपोर्टेशन में सैलरी का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता था। इससे निपटने के लिए मैंने ट्रेन में साडिय़ां भी बेची।

खिडकी-दरवाजे बंद हो तो दीवारें तोड़ दो
जिंदगी में असंभव कुछ नहीं है। मेरे लिए अच्छी यूनिफॉर्म और शूज एक सपना था, लेकिन अमरीका जाने की सोची। मैं कभी फैल्युअर के रूप में नेटिव प्लेस नहीं जाना चाहती थी। अमरीका जाने के लिए जॉब छोड़ दी। सब ने समझाया, लेकिन मुझे लगा कि जाना चाहिए। साल 2000 में अमरीका पहुंची और कई कैसेट कंपनी के साथ काम करने के बाद एक कंपनी में 60 डॉलर की जॉब मिली और सॉफ्टवेयर कंपनी में रिक्रूटर का काम मिला, लेकिन इंग्लिश नहीं आने से छोड़ दी। इन परेशानियों के बाद भी हौसला नहीं हारा। मेरा मानना है कि जब महसूस हो कि सारे खिडक़ी और दरवाजे बंद हो गए हैं तो खुद को कैद करने की जगह दीवारों को तोड़ो। वे बताती हैं कि हर साल 29 अगस्त को 357 अनाथ बच्चों के साथ जन्मदिन मनाती हूं। मैं उनके हक के लिए लड़ रही हूं।

चार बातों का रखें ध्यान
नो कॉम्प्रोमाइज - जिंदगी में कभी समझौता न करें, ये आपको आगे बढऩे से रोकते हैं।
कोई परिस्थिति स्थायी नहीं- जो आज चैलेंज है वो कल आपकी सक्सेस स्टोरी
होगी। पस्थितियां हमेशा बदलती रहती है।
असंभव कुछ नहीं- कलाम साहब की यह बात हमेशा ध्यान में रखें। ये आगे बढऩे की प्रेरणा है।
दिल की सुने- वो न करें जो दुनिया आपसे चाहती है, वो करें जो खुद से चाहते हैं।