
interview of musician aanand ji
इंदौर. दौर बदलता है तो संगीत बदलता है। आज का संगीत वैसा ही है जैसे हमारे संस्कार हो गए हैं। हर घर में अंग्रेजियत हावी है। माता-पिता खुद बच्चों से अंग्रेजी में बात करते हैं। जब रोज के जीवन में भारतीयता नहीं रहेगी तो फिर संगीत में कैसे मिलेगी। ये कहना है हिन्दी फिल्मों की प्रख्यात संगीतकार आनंदजी का जिनकी कल्याणजी के साथ जोड़ी ने ५० के दशक से लेकर ८० के दशक तक धूम मचा रखी थी। रोटरी क्लब की संगीत प्रतियोगिता सुरश्री में जज की भूमिका निभाने के लिए शनिवार को वे इंदौर में थे। इस मौके पर पत्रिका ने उनसे बातचीत की।
आनंद जी का कहना है कि आज के दौर में जैसा संगीत चल रहा है उसी तरह की डिमांड भी है। अगर हम इस दौर में काम करते तो हमें भी वैसे ही गाने बनाने पड़ते जैसे आज बन रहे हैं। हमारे समय की बात अलग थी। उस समय हर धुन और गाने को बहुत समय देकर धैर्य से बनाते थे। अब तो किसी के पास वक्त ही नहीं है, हर काम जल्दबाजी में हो रहा है। तब फिल्म के प्रोड्यूसर- डायरेक्टर संगीत में पूरी तरह इनवॉल्व होते थे, लेकिन अब तो खुद संगीतकार ही इनवॉल्व नहीं होते।
हर गीत की बनाते अलग-अलग धुन
आनंद जी ने बताया कि वे और कल्याणजी जब किसी फिल्म के गीतों की धुन बनाते थे तब वे हर गीत की अलग-अलग धुन बनाते थे, यानी हर गीत की दो धुनें तैयार हो जाती थीं। दो धुनों में से जो धुन फिल्म के प्रोड्यूसर- डायरेक्टर को पसंद आती वही फिल्म में जाती थी। इस बात को लेकर हम भाइयों मे कभी कोई विवाद नहीं हुआ और ये सिलसिला हमेशा चलता रहा।
डांट लगाते थे गायकों को
अपनी बनाई धुनों पर मोहम्मद रफी, मन्नाडे, मुकेश, लता मंगेशकर , आशाा भोंसले जैसे दिग्गज गायकों को गंवाने वाले आनंद जी ने बताया कि गायक कितना ही बड़ा हो पर उसे वैसा ही गाना पड़ता है जैसे संगीतकार चाहता है। इसलिए जब कोई गायक कहना नहीं मानता था तो हम डांट लगाते थे।
Published on:
29 Oct 2017 03:03 pm
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