कजलीगढ़: रोमांच और रहस्य से भरपूर पिकनिक स्पॉट
कजलीगढ़ महू तहसील के सिमरोल गांव का बेहद पुराना पिकनिक स्पॉट है। यहां होलकरकालीन किला भी मौजूद है। शिकारगाह के लिए मशहूर रहा यह स्थान रहस्य से भरपूर है। एक ओर किला, दूसरी ओर शिव मंदिर और यहीं बहता झरना सुखद लगता है।

इंदौर. कजलीगढ़ महू तहसील के सिमरोल गांव का बेहद पुराना पिकनिक स्पॉट है। यहां होलकरकालीन किला भी मौजूद है। शिकारगाह के लिए मशहूर रहा यह स्थान रहस्य से भरपूर है। एक ओर किला, दूसरी ओर शिव मंदिर और यहीं बहता झरना सुखद लगता है।
यहां इंदौर के महाराज शिवाजी राव होलकर द्वारा बनवाई गई शिकारगाह है, कजलीगढ़ रहस्य और रोमांच से भरपूर जगह है। यहां तक पहुंचने के लिए किसी भी वाहन से जाया जा सकता है। सिमरोल से कजलीगढ़ की तरफ मुड़ते ही आसपास हरे-भरे खेत और खलियान मन मोह लेते है। सीधे हाथ की तरफ एक दरगाह भी है, जहां हर साल उर्स भी होता है।
सिमरोल से लेकर कजलीगढ़ तक लगभग सारा रास्ता पक्का और खूबसुरत बना हुआ है , रास्ते में फैली हरियाली के बीच पता ही नहीं चलता की कब कजलीगढ़ आ गए। जैसे ही हम कजलीगढ़ के इलाके के प्रवेश करते है दूर-दूर तक फैले मैदान नजर आते है। इन मैदानों के सबसे अंतिम छोर पर दोनों और खाइयों से घिरा कजलीगढ़ का किला नजर आता है, ये किला आज भी अपनी आन-बान-शान से सीना ताने खड़ा है। गाहे-बगाहे कोई भुला भटका पर्यटक यहां आ जाता है। इस किले मे घुसते ही किले के विशाल दरवाजे के ठीक पास साधुु-संतों ने अपना डेरा जमाया हुए है। कजलीगढ़ रहस्य और रोमांच से भरपूर स्थल है।

स्थिति:- किले के विशाल दरवाजे के पास साधु-संतों का डेरा है। किलेनुमा परकोटे में दूर तक फैले सन्नाटे को चीरती हवा चलती है। परकोटे के सीढ़ीदार गुंबद किले के स्थापत्य कला की कहानी कहती है।
कैसे जाएं:-इंदौर से बीस किलोमीटर दूर इस स्थान पर सिमरोल के रास्ते जाया जा सकता है। यहां से कजलीगढ़ के लिए मुड़ते ही हरे-भरे खेत-खलिहान मन मोह लेते हैं।
यहां देखें वीडियो:-
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