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अपनी पत्नी की याद में गांधीजी ने बसाया था कस्तूरबा ग्राम, पढिय़े किस तरह गांधीजी की यादों को सहेज रहा यह गांव

कस्तूरबा ट्रस्ट में राष्ट्रपिता की यादें भी हैं सुरक्षित

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गांधी बड़े राजनेता से कहीं बड़े समाजसेवी, समाज सुधारक थे। समाज विकास में उनकी विचारधारा ने कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट के रूप में आकार लिया और ट्रस्ट का मुख्यालय बना इंदौर का कस्तूरबा ग्राम। सात दशकों से यहां गांधीजी के विचार को अमल में लाया जा रहा है। बाल विकास, ग्रामीण महिलाओं के विकास, जैविक खेती, पर्यावरण तक कई प्रकल्पों में गांधी विचारधारा की छाप नजर आती है।
गांधीजी ने रखी थी नींव
1944 में कस्तूरबा गांधी की मृत्यु के बाद गांधीजी ने उनकी याद में कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना की। बाद में कुछ दिन सेवा ग्राम वर्धा में रहा। 1950 में इंदौर में खंडवा रोड पर आया। महात्मा गांधी से सरदार पटेल व सुशीला नायर तक इसके अध्यक्ष रहे। वर्तमान अध्यक्ष डॉ. करुणाकर त्रिवेदी ने बताया, ट्रस्ट की स्थापना के लिए गांधीजी की अपील पर कुछ ही दिनों में एक करोड़ की राशि एकत्रित हो गई थी। महिलाओं व बच्चों के विकास के लिए काम करने वाली ये देश की पहली संस्था है। देश के 23 राज्यों में इसके 300 से अधिक केंद्र हैं।
महिला, बाल विकास के कंसेप्ट दिए
कस्तूरबा ग्राम की जोनल को-ऑर्डिनेटर चतुरा रास्कर ने बताया, सरकार की आंगनवाडि़यों का कंसेप्ट कस्तूरबा ग्राम से ही आया है। यहां सबसे पहले बालवाडि़यां बनाई गईं, जहां बच्चों के स्वास्थ्य व प्रारंभिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाता है। ग्राम सेविकाएं यहां प्रशिक्षण के बाद गांव में स्वच्छता, स्वास्थ्य व बालिका शिक्षा पर ध्यान देती थीं। ये योजना भी सरकार ने यहीं से ली। यहां से प्रशिक्षित कांता बहन ने ग्राम नेवाली में महत्वपूर्ण काम किया।
गांधीजी की यादें और दुर्लभ तस्वीरें
गांधीजी की तस्वीरों और कुछ चीजों की स्थायी प्रदर्शनी यहां प्रार्थना हॉल में लगी हैं। इनमें गांधीजी की चप्पल, अस्थियां, भस्मी, चिता के कोयले, उनके ब्लड की स्लाइड, उनके हाथ से बुनी शॉल, उनका बुना सूत आदि हैं। फोटो एग्जीबिशन में दुर्लभ तस्वीरें हैं। एक में गांधीजी बा के साथ टहल रहे हैं तो एक तस्वीर में बा और गांधीजी शांति निकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर से मुलाकात कर रहे हैं। कहीं नेहरूजी के साथ सूत कात रहे हैं तो कहीं ट्रेन के इंजन पर खड़े होकर भाषण दे रहे हैं। कहीं सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। इंदौर में शारदाराजे होलकर छात्रावास में बा के साथ खड़े दिख रहे हैं।

रोज आधा घंटा कताई
कस्तूरबा ग्राम के अध्यक्ष से लेकर सभी कर्मचारी यहां रोज कम से कम आधा घंटा सूत जरूर कातते हैं। यहां पुराना चरखा है तो नया अंबर चरखा भी। यहां काते जाने वाले सूत से बुनियादी स्कूल के बच्चों की यूनिफॉर्म और अस्पताल की जरूरत के कपड़े बुने जाते हैं। यहां बुनाई केंद्र भी है।
17 हजार किताबें
लाइब्रेरी में करीब 17 हजार किताबें हैं, जिनमें गांधीजी लिखित किताबों के साथ गांधी पर लिखी, गांधीवादी विचारकों सहित अन्य विषयों की किताबें शामिल हैं।

ऑर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत
कस्तूरबा ग्राम में गांधीजी के सपनों के मुताबिक कृषि क्षेत्र बनाया गया, जहां बॉयोडाइवर्सिटी का कंजर्वेशन करते हुए उन्नत बीज विकसित किए जाते हैंं। यहां जैविक खेती के कई तरीके खोजे गए। यहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्र में एग्रीकल्चर कॉलेज से लेकर बायोटेक्नोलॉजी तक के स्टूडेंट्स जैविक खेती के गुर सीखने आते हैं।
युवतियां पढ़ती हैं रूरल डेवलपमेंट
कस्तूरबा ग्राम रूरल इंस्टिट्यूट लड़कियों का पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट है, जहां बीए और बीएसएसी में रूरल डेवलमेंट अनिवार्य विषय है। इस विषय में पीजी डिग्री भी ली जा सकती है। ये रेसीडेंशियल इंस्टिट्यूट है।