
इस मंदिर में मूर्ति नहीं ग्रंथ और मुकुट की होती है पूजा, तुरंत पूरी होती है मन्नत
इंदौर. मंदिरों में भगवान की मूर्तियां विराजित कर पूजा की जाती है, लेकिन शहर में एक एेसा मंदिर है जहां पर मूर्तियां नहीं है, लेकिन फिर भी कहलाता है यह राधा-कृष्ण मंदिर। अपने आप में अनोखे इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। मन्नत कोई भी हो तुरंत सुनवाई होती है। मंदिर का इतिहास और परंपरा भी अनोखी है जो कभी देखी न कभी सुनी।
गौराकुंड चौराहे के ठीक पहले प्रणामी संप्रदाय का प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर है। मंदिर में दाखिल होते ही सामने चार मूर्तियां स्थापित प्रतीत होती है। असल में वो मूर्तियां नहीं है बल्कि ग्रंथ और मोर मुकुट है। भक्त यहां आते हैं, आरती के साथ पूजा-अर्चना और प्रसाद का वितरण भी होता है।
ग्रंथों का करते हैं शृंगार
मंदिर में चांदी के सिंहासन पर 400 साल पुराने श्रीकृष्ण स्वरूप साहब ग्रंथ स्थापित किए हैं। ग्रंथों को मोर मुकुट पहनाया जाता है, पोषाक भी राधा-कृष्ण जैसी ही पहनाई जाती है। शृंगार इस तरह से किया जाता है, जिससे कि लगता ही नहीं कि ग्रंथ है, बिल्कुल राधा-कृष्ण की मूर्तियां ही प्रतीत होती है।
100 साल पुराना मंदिर
मंदिर का निर्माण होलकर राजघराने में पंच रहे मांगीलाल भंडारी ने करवाया था। प्रणामी संप्रदाय के गुरु प्राणनाथ ने जब ग्रंथों का अध्ययन किया तो उन्होंने समझा कि मूर्तियों की तरह ही ग्रंथ भी प्रभावशाली होते हैं। इसीलिए इस मंदिर में ग्रंथों की पूजा की जाती है। मंदिर का संचालन करने वाली सुशीला भंडारी बताती हैं कि प्रणामी संप्रदाय के कई शहरो में मंदिर हैं। महात्मा गांधी ने भी अपनी जीवनी में प्रणामी मंदिर जाने का जिक्र किया था। मंदिर में विराजित ग्रंथ कुरआन और पुराण को समान बताते हैं। गांधीजी के मन में ईश्वर अल्लाह तेरो नाम और वैष्णव जन ते तेने कहिए जैसे विचार इन्हीें ग्रंथों का अध्ययन करने से आए थे।
जन्माष्टमी पर विशेष पूजा
भगवान श्रीकृष्ण की जिस तरह से पूजा होती है, उसी तरह रोज पांच बार यह ग्रंथ पुजाते हैं। ग्रंथों को झूला भी झुलाया जाता है। समय-समय पर प्रवचन भी होते हैं। संप्रदाय के अलावा अन्य समुदाय को मानने वाले भक्त बड़ी संख्या में मंदिर आते हैं। जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन के साथ पूजा-अर्चना होती है। साथ ही पान का भोग लगता है।
Published on:
03 Sept 2018 12:22 pm
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