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एमपी के ओलंपिक चैम्पियन को 10 साल से तरसा रही सरकार

जमीन के लिए दस साल से भटक रहा मध्यप्रदेश के ओलंपिक चैम्पियन का परिवार

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Kamal Singh

Aug 22, 2016

madhya pradesh government cannot give land to olym

madhya pradesh government cannot give land to olympic champion hockey player shankar laxman


प्रमोद मिश्रा इंदौर. ओलंपिक ओलंपिक के पदक में अंतर है। ओलंपिक के आयोजकों की नजर में भले ही न हो, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार की दृष्टि में बिलकुल है।

शायद यही वजह तो है कि रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतने पर पी.वी. सिंधू को पचास लाख और कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक को पच्चीस लाख रुपए देने की घोषणा करने वाली मध्यप्रदेश सरकार को अपने यहां के ओलंपिक चैम्पियन हॉकी खिलाड़ी शंकर लक्ष्मण को ऐलान के बावजूद जमीन देने की फुरसत नहीं मिल रही है। फुरसत क्या नहीं मिल रही है, सरकार के नुमाइंदे तो लक्ष्मण के परिवार को चक्कर दर चक्कर लगाने को विवश किए हुए हैं। यहां उल्लेख करना उचित होगा कि शंकर लक्ष्मण ने तीन ओलंपिक खेले और तीनों बार झोली पदक से भरकर देश और राज्य का सीना चौड़ा किया। दो बार स्वर्ण पदक और एक बार रजत पदक से। सरकार ने खुश होकर उन्हें 10 एकड़ जमीन देने की घोषणा की। वर्ष 1982 में। आलम यह है कि 34 साल में यह जमीन लक्ष्मण को नहीं मिल पाई। जमीन मिलने का सपना लिए लक्ष्मण ने वर्ष 2006 में दुनिया से विदाई ले ली। इसके बाद उनका परिवार जमीन के लिए भटकने व चक्कर लगाने के काम कर रहा है।

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महू में रहने वाले शंकर लक्ष्मण के परिवार में पत्नी शांतिबाई व बेटा मनोहर हैं। मनोहर ने बताया कि पहले उन्हें 1982 में 10 एकड़ जमीन आवंटित की गई। यह जमीन बाद में सेन्य रैंज में आ गई तो उसे वापस ले लिया गया। इसके बाद 2004-05 में फिर से जमीन के लिए संघर्ष शुरू हुआ। जमीन का आवंटन होने को नजदीक था, इसी बीच कंटेनर कॉर्पोरेशन को यह जमीन आवंटित किए जाने का पता चला तो मां शांतिबाई ने आपत्ति दर्ज करवाई। इस बीच 2006 में लक्ष्मण का निधन हो गया। फिर उनके लिए जो जमीन चुनी गई, वह अब कंटनेर कॉर्पोरेशन के नाम हो गई है। जिला प्रशासन ने टीही में कंटेनर कॉर्पोरेशन को मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क के लिए करीब 16 एकड़ जमीन दी है, जिसमें शंकर लक्ष्मण के परिवार को देने के लिए प्रस्तावित 10 एकड़ जमीन भी शामिल कर ली गई है। मनोहर के मुताबिक, उनकी बुजुर्ग मां जमीन मिलने का सपना ही देख रही हैं। वह तथा पूरा परिवार सालों से जमीन की लड़ाई लड़ते थक गया है।

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इस तरह चला जमीन का संघर्ष
- 2004-05 में शंकर लक्ष्मण ने जमीन के लिए प्रयास किए थे। तत्कालीन सेना के डिप्टी कमाडेंट कर्नल मेलबिल ए डिसोजा ने अक्टूबर 2005 में कलेक्टर, इंदौर को पत्र लिखकर उन्हें जमीन देने के लिए पत्र लिखा।

-तत्कालीन कलेक्टर ने तुरंत महू तहसीलदार को पत्र लिखकर महू, सांवेर या देपालपुर तहसील में कहीं भी 10 एकड़ जमीन आवंटित करने के निर्देश दिए।

-जुलाई 2014 में तत्कालीन अवर सचिव सुमन रायकवार ने फिर जमीन आवंटन का आदेश दिया।

-महू तहसीलदार ने 25 मई 2015 में टीही के सर्वे नंबर 74/1 की 3.148 हेक्टेयर व 74/2 की 1.620 हेक्टेयर (करीब 10 एकड़) जमीन आवंटन की अनुशंसा कर दी।

-जुलाई 2015 में अपर कलेक्टर दीपक सिंह ने यह जमीन कंटेनर कॉर्पोरेशन को देने की जानकारी दी, जिस पर परिवार ने आपत्ति दर्ज करवाई।



शंकर लक्ष्मण : जीवन परिचय

-7 जुलाई 1933 में जन्म हुआ, 29 अप्रैल 2006 को निधन हुआ।

-1956, 1960 व 1964 में भारतीय हॉकी टीम का गोलकीपर की हैसियत से ओलंपिक में प्रतिनिधित्व, दो गोल्ड व एक सिल्वर मेडल जीते।

-1966 में शंकर लक्ष्मण की कप्तानी में टीम एशिया कप में गोल्ड मेडल विजेता रही। 1968 में उन्होंने संन्यास ले लिया।

-1979 में सेना से सेवानिवृत्त हुए मराठा लाइट इन्फैंट्री में कैप्टन थे।

-अर्जुन अवार्ड व पद्मश्री मिले।

2 लाख का मुआवजा दिया
बेटे मनोहर का कहना है कि सेना द्वारा जमीन लेने के बाद 2 लाख के अलावा और मुआवजा मिलना तय था लेकिन नहीं मिला। 2004-05 में फिर से जमीन की मांग करने पर सेना ने अलॉटमेंट के लिए कलेक्टर को पत्र लिखा था। वहीं कलेक्टर पी. नरहरि का कहना है कि पहले 2 लाख का मुआवजा दिया था बाद में फिर आवेदन किया गया है। परीक्षण के बाद जल्द फैसला कर लेंगे।

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प्रक्रिया चल रही थी
2014-15 में शंकर लक्ष्मण के परिवार को जमीन देने की प्रक्रिया चल रही थी। अभी की स्थिति की मुझे जानकारी नहीं है।
-तापिश पांडे, महू तहसीलदार

सुलझाएंगे मामला
मामला मेरे संज्ञान में नहीं आया है। अगर शासन ने जमीन देने के लिए कहा है तो जल्द मामला सुलझाकर परिवार को जमीन का आवंटित की जाएगी।
पी. नरहरि, कलेक्टर