
Madhya Pradesh Municipal Corporation Election 2022: पार्षद लाेखंडे रखते थे एक-एक बल्व का हिसाब, महापौर चौहान खुद करते बेकलेन की सफाई
इंदौर. स्वच्छता में नंबर वन इंदौर नगर निगम में राजनीतिक मतभेद चलते रहे। शहर सरकार के लिए अलग-अलग दलों के साथ समीकरण भी बनते-बिगड़ते रहे। इन सब के बावजूद कई महापौर व पार्षद ऐसे रहे, जिन्होंने अपने काम की ऐसी छाप छोड़ी, जो आज भी पार्षदों के लिए निगम का काम करने के लिए आदर्श नजीर है। पुरानी पीढ़ी के पार्षद लोखंडे साहब हों या महापौर चौहान सभी ने अपने वार्ड में लोगों के साथ जुड़कर काम किया। उनकी समस्याओं को खुद खड़े रहकर निराकृत करवाया।
बेकलेन खुद साफ करते
शहर में 1965-66 में महापौर रहे स्व. लक्ष्मणसिंह चौहान ने अपने काम से एक अलग छाप छोड़ी। जिद के पक्के चौहान कांग्रेसी होने के बाद भी सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण का स्वागत करने पहुंच गए थे। निगम में वाहन सुविधा होने के बाद भी अपनी साइकिल से कार्यालय पहुंच जाते थे। वालीवाॅल, तैराकी के खिलाड़ी चौहान के बारे में अमरीकन रायटर ने अपनी एक किताब में उल्लेख किया है कि वे स्वच्छता के पक्षधर थे, अपने घर के पीछे की बेकलेन की सफाई खुद करते और लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित करते।
बेटी को टिकट देने से किया इनकार
80 के दशक में महापौर बने नारायणराव धर्म ने कभी सिध्दांतों से समझौता नहीं किया। कॉलोनी को सुविधाजनक बनाने के लिए कॉलोनाइजर, जनता और निगम को मिलाकर विकास का फार्मूला बनाया। एक चुनाव में टिकट वितरण पर चर्चा हो रही थी, निर्भयसिंह पटेल ने उनकी बेटी का नाम रख दिया। उन्होंने तत्काल निरस्त करते हुए कहा, मैं समिति में होकर अपने किसी परिजन को टिकट नहीं दूंगा। बेटी तो दूर की बात है।
साइकिल से घूम नल-बिजली पर नजर
रामबाग क्षेत्र के पार्षद वासुदेव राव लोखंडे के बारे में कहा जाता है कि उनकी पूरे वार्ड पर नजर होती थी। सुबह साइकिल से वार्ड में घूमने निकल पड़ते। नल के समय टोटियों पर उनकी खास नजर होती थी। पानी भरने के बाद यदि किसी ने नल खुला छोड़ दिया तो उसे बुलाकर बंद करवाते। वार्ड में बिजली के खंबों पर नंबर लिख दिए, शाम को जिस खंबे का बल्व बंद होता नोट कर लेते। दूसरे दिन निगम कर्मी को साथ लाकर नया लगवाते थे।
संसाधन का पुर्नउपयोग करना सिखाया
स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष रहे एल्डरलैन नारायणदास मेहतानी ने संसाधनों का पुर्नउपयोग कैसे करें, इस बात पर जोर दिया। निगम की गैंग खंभों से खराब ट्यूबलाइट लेकर आते तो वे उसे कचरे में डालने के बजाय, टेस्टिंग करने का कहते। उसकी खराबी दिखवाते और सुधरने योग्य होती तो उसे सुधार कर दूसरे खंभे पर लगवाते थे।
बगीचों को हरा-भरा बनाया
शहर में 1990 के बाद की परिषदों के पार्षदों ने भी विकास के लिए खूब प्रयोग किए। इतवारिया बाजार, लोकमान्य नगर व अन्य क्षेत्रों से पार्षद रहे सुरेश मिंडा अपने वार्ड में सुबह 7 बजे पहुंचने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कब्जे हो रहे बगीचों को जनसहयोग से विकसित करने की मुहिम शुरू की। लोगों के साथ मिलकर लोकमान्य नगर, मून पैलेस, इतवारिया बाजार, इंद्रलोक कॉलोनी के बगीचों को हरा-भरा किया। इसके बाद कई पार्षद आगे आए।
ऐसे कई नाम हैं...
यह तो उदाहरण है, ऐसे और भी कई नाम हैं, जिनको निगम की हर पीढ़ी याद करती है। महापौर में देखें तो सुरेश सेठ, नारायण प्रसाद शुक्ला, राजेन्द्र धारकर, चांदमल गुप्ता ने जनता के बीच पैदल घूम कर काम किया। वहीं, पार्षदों में माधवराव खुटाल, खाम्बेटे दादा, बालाराव इंगले, कंचन भाई ध्रुव, रमेश उस्ताद, जुगल चौकसे, चंपालाल यादव जैसे नाम भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं।
Published on:
29 Jun 2022 01:49 am
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