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मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है इमोशंस को मन में ही दबा लेेना

टीवी सीरियल भाकरवड़ी की स्टारकास्ट इंदौर आई

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इंदौर

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Hussain Ali

Mar 28, 2019

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मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है इमोशंस को मन में ही दबा लेेना

इंदौर. सोनी सब टीवी के नए धारावाहिक भाकरवड़ी के कलाकार और प्रोड्यूसर बुधवार की दोपहर इंदौर आए और मीडिया से मुलाकात की। सीरियल में मुख्य किरदार निभा रहे परेश गणात्रा, भक्ति राठौर और अक्षिता मुद्गल के साथ सीरियल के प्रोड्यूसर जेडी मजीठिया भी आए। भाकरवड़ी में गुजराती महिला का किरदार निभा रहीं भक्ति राठौर गुजराती रंगमंच और गुजराती फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री हैं। उनका कहना है कि हम भारतीय लोग अकसर अपने इमोशंस को जाहिर नहीं करते, बल्कि उन्हें दबा देते हैं, पर यह हमारी मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है। टीवी सीरियल्स हमारे दबे हुए इमोशंस को बाहर निकाल देते हैं, क्योंकि कई बार दर्शक किसी कैरेक्टर से इतने जुड़ जाते हैं, उसके दुख में दुखी और उसके सुख में खुश हो जाते हैं।

भक्ति ने कहा कि फिल्मों में सबसे बड़ा चैलेंज यह होता है कि बड़े परदे पर बारीक से बारीक इमोशंस भी दिख जाता है, इसलिए वहां कैरेक्टर में गहरे तक उतरना पड़ता है। टीवी पर डेली सोप का चैलेंज यह है कि एक्टर को यह ध्यान रखना पड़ता है कि रोज एक जैसे अभिनय से दर्शक कहीं ऊब न जाएं। सीरियल में भक्ति की बेटी बनीं अक्षिता मुद्गल ने कहा कि वे डांसर और कोरियाग्राफर हैं। कुछ साल पहले डांस इंडिया डांस रियलिटी शो में पार्टिसिपेट किया था और तभी से मेरे पास एक्टिंग के प्रस्ताव आने लगे और अब मैं एक्टिंग में कम्फर्टेबल फील कर रही हूं। हालांकि डांस करना छोड़ा नहीं है।

टाइपकास्ट होने से बचा
भाकरवड़ी में गुजराती का किरदार कर रहे परेश गणात्रा इससे पहले बा, बहू और बेबी सहित कई सीरियल्स और फिल्मों में काम कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि हमारी इंडस्ट्री में किसी भी कैरेक्टर को बहुत जल्दी टाइपकास्ट कर दिया जाता है पर एक्टर को खुद ही इससे बचना होगा। बा, बहू.. के बाद मेरे पास 16 फिल्मों के प्रस्ताव आए, पर सभी में बा, बहू जैसा ही किरदार था। इसलिए मैंने 13 फिल्में ठुकरा दीं और केवल तीन ही फिल्में कीं, जिनमें अलग-अलग कैरेक्टर थे। इस तरह से खुद को टाइपकास्ट होने से बचा लिया।

टीवी में अच्छे स्क्रिप्ट राइटर्स की कमी
भाकरवड़ी के प्रोड्यूसर जेडी मजीठिया इससे पहले बा, बहू और बेबी, खिचड़ी और चिडि़याघर जैसे कॉमेडी सीरियल बना चुके हैं। उनका कहना है कि टीवी इंडस्ट्री में अच्छे राइटर्स की बेहद कमी है, इसलिए अच्छा कंटेट नहीं आ पा रहा है। आजकल लोगों के पास टाइम की कमी है, इसलिए सीरियल की स्क्रिप्ट इतनी टाइट होनी चाहिए कि लोग आधे घंटे उस एपिसोड पर रुके रहें। मजीठिया का कहना है कि हमने इस सीरियल में सास- बहू फॉर्मूले से दूर एक अलग तरह की कहानी कॉमेडी पेश की है। जिस तरह से भाकरवड़ी बनाने में कई तह लगानी पड़ती हैं, उसी तरह इस कहानी की भी कई परते हैं।