
मप्र सरकार ने निगम, मंडल और प्राधिकरण जैसे 46 महत्वपूर्ण पदों पर काबिज नेताओं को हटाया, लेकिन सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखा। करीब एक दर्जन आयोग और बोर्ड के अध्यक्षों व उपाध्यक्षों को नहीं हटाया है।
लंबे इंतजार के बाद शिवराज सरकार ने 24 दिसंबर 2021 को निगम, मंडल और प्राधिकरणों में थोकबंद नियुक्तियां की थीं। 25 माह बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भाजपा संगठन के निर्देश पर सभी को भंग करते हुए 46 नेताओं को मुक्त कर दिया। इसके बाद प्रदेश भाजपा की राजनीति में हलचल शुरू हो गई है। हटने वाले नेता फिर जुगत भिड़ा रहे हैं तो दावेदारों ने कमर कस ली है। वे अपने-अपने नेताओं के माध्यम से दावेदारी कर रहे हैं।
इस बड़े बदलाव में भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत लोकसभा चुनाव को देखते हुए अजा, अजजा और पिछड़ा वर्ग को नहीं छेड़ा है। मध्यप्रदेश राज्य सहकारिता अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम अध्यक्ष सावन सोनकर, सफाई कामगार आयोग अध्यक्ष प्रताप करोसिया, मध्यप्रदेश राज्य सहकारिता अनुसूचित जनजाति वित्त विकास निगम की अध्यक्ष निर्मला बारिया और पिछड़ा वर्ग आयोग अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया पदों पर काबिज हैं। इनके अलावा केश शिल्पी बोर्ड, देव नारायण बोर्ड सहित आठ बोर्ड अब भी वजूद में हैं। इनमें से किसी को नहीं छेड़ा गया है। मजेदार बात यह है कि इन आयोग और बोर्ड में न तो फंड है और न ही स्टाफ। आम तौर पर नेताओं को उपकृत करने के लिए इनमें नियुक्तियां की जाती हैं।
आइडीए पर सबकी निगाहें
प्रदेश में सबसे बड़ा प्राधिकरण आइडीए ही है, जिसमें पिछले साल 6 हजार करोड़ का बजट पेश किया गया था। इसके चलते कई नेता अध्यक्ष बनना चाहते हैं। दौड़ में जयपालसिंह चावड़ा का नाम सबसे आगे है, जो अपने काम के आधार पर फिर से अध्यक्ष बनना चाहते हैं। उनके अलावा नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के करीबी हरिनारायण यादव, डॉ. निशांत खरे, पूर्व विधायक जीतू जिराती, सुदर्शन गुप्ता और गोपी नेमा के नाम भी चर्चा में हैं।
Updated on:
15 Feb 2024 07:45 am
Published on:
15 Feb 2024 07:43 am
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