
27 डिप्टी रजिस्ट्रार, 10 डीएसपी समेत प्रदेश को मिले 286 नए अफसर, 12 पद रह गए रिक्त
इंदौर. मप्र लोक सेवा आयोग (एमपी पीएससी) ने 298 पदों के लिए कराई राज्य सेवा परीक्षा 2018 की अंतिम चयन सूची जारी कर दी। मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के अंकों की मेरिट के आधार पर प्रदेश के 286 नए अफसरों के नाम पर मुहर लग गई। इससे पहले इंटरव्यू में शामिल सभी 895 अभ्यर्थियों के अंकों की घोषणा 26 जनवरी को की गई थी
मुख्य परीक्षा के बाद पदों की तुलना में तीन गुना अभ्यर्थी चुनकर 31 दिसंबर से 23 जनवरी के बीच इंटरव्यू कराए गए थे। सिर्फ तीन दिन में अंक तालिका जारी करने से अगले दो दिन में रिजल्ट भी आने की उम्मीद जताई जा रही थी। चयन सूची में देरी से अभ्यर्थियों को नियुक्ति प्रक्रिया विवादों में उलझने की शंका थी। शुक्रवार देर शाम पीएससी ने चयन सूची फाइनल कर जारी कर दी। सभी पदों के लिए चयनित अभ्यर्थियों के साथ अनुपूरक सूची भी जारी की गई। डिप्टी रजिस्ट्रार के 27, डीएसपी के 10, जिला जेल अधीक्षक के 2, जिला आबकारी अधिकारी के 2, वाणिज्यिक कर अधिकारी के 5, नायाब तहसीलदार के 77 सहित 286 के नाम चयन सूची में हैं। विज्ञापित पदों में से पूर्व सैनिकों के लिए 12 आरक्षित पद योग्य आवेदक न मिलने से रिक्त रह गए।
एमपीपीएससी टॉपर हर्षल चौधरी ने साझा की सक्सेस स्टोरी
मप्र लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा परीक्षा-2018 के टॉपर हर्षल चौधरी शुक्रवार को इंदौर में थे। पत्रिका से खास चर्चा कर उन्होंने अपनी सक्सेस स्टोरी शेयर की। उन्होंने इंटरव्यू का एक किस्सा सुनाया और कहा इंटरव्यूअर ने उनसे पूछा- कर्ज माफी चल रही है। आप इनकम टैक्स पेयर हैं। हर इनकम टैक्स पेयर को लगता है कि कर्ज माफी का पैसा उनके टैक्स से चुकाया जा रहा है, इस पर आपकी क्या धारणा है। मैंने जवाब दिया कि हमारा देश कृषि प्रधान है। यहां 70 फीसदी जनसंख्या कृषि आधारित है, लेकिन देश में किसानों के प्रति संवेदनशीलता की कमी है। हम सोचते हैं कि अनाज की उपलब्धता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। किसान वह मशीन है, जिसे सिर्फ अनाज उगाना है। न तो कभी उसे बेटी की शादी करनी है, न कभी बीमार पडऩा है। इंटरव्यूअर्स की पैनल मेरे इस जवाब से काफी प्रभावित हुई। 22 मिनट के इंटरव्यू में मुझे 175 में से 150 माक्र्स मिले। इंटरव्यू की तैयारी इंदौर से ही की है। यहां कुछ संस्थानों में मॉक इंटरव्यूज दिए। अपनी तैयारियां समझीं और गलतियों को सुधारा।
10वीं बाद बुआ ने उठाया खर्च
हर्षल की सक्सेस के पीछे बहुत गहरा संघर्ष है। हर्षल बताते हैं कि उनके पिता मंडला में पिछले 48 साल से आटा-चक्की चला रहे हैं। घर खर्च ही निकल पाता है। 10वीं के बाद स्कूल फीस के पैसे नहीं थे। बुआ आगे पढ़ाने के लिए अपने साथ भिलाई ले गई। यहां ११वीं और १२वीं की। फिर एआइइइई के जरिए एनआइटी रायपुर मिला। बड़ी मुश्किल से फीस के 44 हजार रुपए जुटाए और एडमिशन लिया। ओबीसी होने की वजह से स्कॉलरशिप मिली और पूरी इंजीनियरिंग की।
Published on:
02 Feb 2019 07:46 pm
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