
terror of rats in indore चूहों का आतंक (फोटो सोर्स : पत्रिका क्रिएटिव)
MP News: मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में इन दिनों चूहों का आतंक है। ये चूहे एक-दो जगह नहीं बल्कि शहर के मध्य क्षेत्र में बड़ा खतरा बन गए हैं। इनके कारण राजबाड़ा, गांधी हॉल, एमवायएच, कृष्णपुरा छत्री, बोलिया सरकार छत्री, देवलालीकर कला विथिका के साथ ही महत्वपूर्ण निर्माण शास्त्री ब्रिज, पटेल ब्रिज, कृष्णपुरा पुल भी खतरे में हैं। मध्य क्षेत्र के घरों में भी चूहे नुकसान कर रहे हैं। बिलों में रहकर अदृश्य तरीके से जमीन को खोखला कर रहे हैं। इन पर काबू पाने की दिशा में किसी का ध्यान नहीं है।
शहर के मध्य क्षेत्र के खाली स्थानों के साथ नदियों के किनारे की बसाहट और ड्रेनेज लाइनें चूहों का घर बन चुकी हैं। जमीन से 5 से 10 फीट नीचे बिल हैं, जिन्हें इन चूहों ने सुरंग बना दिया है। ये सुरंगें आधा से एक किलोमीटर लंबी हैं। बिल्डिंगों के नीचे और आसपास की मिट्टी खोद देते हैं, जिसके कारण नींव और कॉलम धंसने लगते हैं और दरारें भी आती हैं। ये इमारतें खतरनाक होती जा रही हैं। इसका नमूना जवाहर मार्ग से सरस्वती नदी के किनारे बनी नई सड़क के साउथ तोड़ा के ऊंचाई के हिस्से में देखा जा सकता है।
● एमवाय अस्पताल : एमवायएच में दो मासूमों की मौत के साथ ही कई मरीजों के शरीर और लाशों को चूहों के नुकसान पहुंचाने के मामले सामने आ चुके हैं। पीडब्ल्यूडी मान चुकी है कि चूहों के कारण अस्पताल की बिल्डिंग भी कमजोर हुई है।
● राजबाड़ा: 2017 में राजबाड़ा का एक हिस्सा गिरने के समय वहां भी चूहों के बिल मिले थे। इन्होंने इमारत के लकड़ी के हिस्से के साथ दीवारों में भी छेद कर रखे थे। हालांकि पुर्नद्धार में बिलों को भी बंद कर दिया।
● गांधी हॉल : गांधी हॉल के आसपास की खाली जमीन चूहों का मुख्य ठिकाना है। बिल्डिंग के आसपास इनके कई में चूहे घूमते रहते हैं।
● कृष्णपुरा छत्री : कान्ह नदी के किनारे पर पत्थरों से इनका निर्माण हुआ था, लेकिन आसपास मौजूद बगीचे और नदी के किनारे के टूटे-फूटे हिस्से चूहों का ठिकाना बन गए हैं।
● बोलिया सरकार छत्री : तीन तरफ से बिल्डिंगों से ढंक चुकी ऐतिहासिक इमारत के आसपास की खाली जमीन चूहों का मुख्य ठिकाना है। बड़े-बड़े चूहों का यहां घर बन चुका है।
● देवलालीकर कला विथिका : आर्ट्स से जुड़ी ऐतिहासिक इमारत के चारों ओर बड़े-बड़े चूहों के बिल देखे जा सकते हैं।
● कृष्णपुरा पुल : बरसों पुराने इस पुल से रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन नदी के दोनों किनारों के हिस्से में कई चूहों के बिल हैं। चूहों ने जमीन को खोखला कर दिया है।
● शास्त्री ब्रिज : इस पुल के निर्माण के लिए मिट्टी दबाकर उसकी लेन को तैयार किया है। इसके कारण पुल के रेलवे पटरी के ऊपर के हिस्से को छोड़कर बाकी के हिस्से में मिट्टी है, जिसमें चूहों के घर हैं। इन्हीं चूहों के कारण ब्रिज के एक हिस्से में बड़ा गड्ढ़ा बन चुका है।
● खड़खड़िया (सुभाष मार्ग ब्रिज) : सुभाष मार्ग के कान्ह नदी पर बने ब्रिज के आसपास की खाली जगह में चूहों की बड़ी आबादी रहती है, जो कि पुल के बड़े हिस्से को खोखला कर चुके हैं।
● छावनी क्षेत्र : छावनी अनाज मंडी के अलावा श्रद्धानंद मार्ग पर कई अनाज दुकानें हैं, जो कि इन चूहों का घर हैं। यहां ये आसानी से रहने के साथ नुकसान भी कर रहे हैं।
● पटेल ब्रिज : इसके एक ओर सियागंज और दूसरी ओर सरवटे क्षेत्र हैं। एक ओर परचून की दुकानें और दूसरी ओर कई रेस्टोरेंट हैं। इस पुल में रेलवे पटरी और सरवटे सड़क के नीचे की स्लैब के हिस्से को छोड़कर बाकी का हिस्सा मिट्टी को दबाकर भरते हुए तैयार किया है, जिसमें बड़ी संख्या में चूहे हैं।
रीगल तिराहा, सरवटे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और रेलवे लाइन के आसपास के क्षेत्र, छावनी अनाज मंडी, छावनी पारसी मोहल्ला, लुनियापुरा, सियागंज, हाथीपाला, रानीपुरा, रिवर साइड रोड, काछी मोहल्ला, सिख मोहल्ला, साउथ तोड़ा, जेल रोड, सुतारगली (नगर निगम रोड), एमजी रोड, राजबाड़ा, पीरगली, भोई मोहल्ला, इमलीबाजार, बड़वाली चौकी, तिलकपथ, जूना पीठा, खजूरी बाजार, आडा बाजार, नंदलालपुरा, रेशमवाला लेन, हरसिद्धि, पंढरीनाथ, कबूतरखाना, कलालकुई आदि क्षेत्रों में बड़े-बड़े चूहे आसानी से मिल जाते हैं। एक्सपर्ट की मानें तो चूहों के जरिए खतरनाक वायरस भी फैलते हैं। साथ ही उनके अपव्यय से भी कई तरह की बीमारियां फैलती हैं।
नगर निगम के पास चूहों की आबादी को रोकने के कोई साधन ही मौजूद नहीं है। यहां तक कि इस पर ध्यान देने के लिए जरूरी पशु चिकित्सक भी नगर निगम के पास नहीं है।
चूहों का एक जोड़ा भी यदि कहीं पहुंच जाए तो सालभर में वहां 100 से ज्यादा चूहे हो जाते हैं। चूहे छह माह में प्रजनन योग्य होने के बाद लगातार बच्चे पैदा कर सकते हैं। एक बार में मादा 10 से 12 बच्चों को जन्म देती हैं। 7 साल के जीवन काल में वो 350 तक बच्चे पैदा करती है, जिसमें मादा ज्यादा होती है और अगले छह माह में वो भी बच्चे देने के काबिल हो जाती हैं। आबादी को प्राकृतिक तौर पर सांप, मोर, बिल्ली और कुत्ते ही काबू में रखते हैं, लेकिन शहरी क्षेत्र में इनकी कमी के कारण संख्या बेकाबू हो रही है। चूहे नमी, अंधेरे हिस्से के साथ ही उन जगह पर रहते हैं जहां खाना आसानी से मिल जाए। आगे के दांत बढ़ते हैं। इसे रोकने उन्हें जो मिलता है उसे कुतरते हैं, जो नुकसान का मुख्य कारण बनता है। लगातार दो साल तक पेस्ट कंट्रोल से ही रोका जा सकता है। - डॉ. प्रशांत तिवारी, सेवानिवृत्त शासकीय पशु चिकित्सक
हमारे घर के पास में ही चूहों के बड़े-बड़े बिल हैं। इनमें एक-एक फीट के चूहे हैं। ये दिनभर यहां घूमते रहते हैं। इन्हें मारने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन ये खत्म ही नहीं होते हैं। मेरी हैंडलूम की दुकान में भी कई बार ये घुस जाते हैं और वहां रखे सामान को कुतरकर खराब कर देते हैं जिससे हमें नुकसान होता है। - मंसूर अली, दुकानदार एमजी रोड
Published on:
05 Nov 2025 12:31 pm
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