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कवि नीरज की किस शहर में भूल आए थे ‘अपने दांत ‘ एक क्लिक में जानिए …  

जानिए लोकप्रिय कवि गोपालदास 'नीरज' ने 'पत्रिका' से विशेष बातचीत में उन्होंने क्या कहा ...

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Shruti Agrawal

Dec 16, 2016

poet gopaldas neraj

poet gopaldas neraj


इंदौर.'पिछली बार जब इंदौर आया था तो मैं यहां अपने दांत भूल गया था। रास्ते में मुझे याद आया तो जिनके बुलावे पर आया था, उन्हें सूचित किया। मैं सोच रहा था कि मुझे बिना दांत के कुछ दिन बहुत तकलीफ होने वाली है, पर 24 घंटे में मेरे दांत स्पीड पोस्ट से मेरे पास पहुंच गए थे।'

यह कहना है लोकप्रिय कवि गोपालदास 'नीरज' का। वे गुरुवार को शहर में थे। इस दौरान 'पत्रिका' से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि जितना प्यार मुझे इंदौर से मिला है, उतना इटावा या कानपुर से नहीं मिला।


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यही कारण है कि मुझे जब इंदौर से बुलावा आता है तो मैं आ जाता हूं। इस बार भी आने से पहले कई बार सोचा पर दिल्ली में सर्दी बहुत थी और तबीयत भी ठीक नहीं थी। इसके बाद भी मैं खुद को आने से रोक नहीं पाया।

राजनीति जब गिरती है तो साहित्य ही संभालता है

नीरज ने एक किस्सा साझा करते हुए बताया कि एक बार नेहरू जी लाल किले में हो रहे कवि सम्मेलन में शामिल होने के लिए मैथिलीशरण गुप्त के साथ जा रहे थे। लाल किले में चलने के दौरान नेहरू जी का पैर फिसल गया था तब मैथिलीशरण गुप्त ने हाथ देकर उन्हें संभाला था। जब नेहरू जी का संतुलन ठीक हुआ था, तो मैथिली जी ने मुस्कराते हुए कहा था कि राजनीति जब गिरती है तो साहित्य ही संभालता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान राजनीति का स्तर बहुत ज्यादा गिर गया है।

आज भी गीत लिखूं तो चाहूंगा किशोर ही आवाज दें

मैं आज के दौर में भी कोई गीत लिखूं तो चाहूंगा कि मेरे उस गीत को किशोर कुमार ही आवाज दें। वैसे तो आज-कल मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है पर फिर भी जब अच्छा महसूस करता हूं तो प्रेम पुजारी फिल्म का किशोर कुमार का गाया हुआ गीत 'फूलों के रंग से, दिल की कलम से' सुनना पसंद करता हूं।



gopaldas neeraj exclusive interview


सुबह हुआ कवि सम्मेलन

एक बार मैं और अटल बिहारी वाजपेयी कवि सम्मेलन में शामिल होने के लिए ट्रेन से ग्वालियर जा रहे थे। हमारी ट्रेन इतनी ज्यादा लेट हो गई कि हम कवि सम्मेलन खत्म होने के बाद पहुंचे। आयोजन स्थल पर पहुंचे तो वहां पूरा अंधेरा था। हमें समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं। ऐसे में अटल जी के कहने पर हम आयोजन स्थल से निकलकर चाय पीने पहुंचे।
हम चाय पी ही रहे थे कि हमें कवि सम्मेलन के आयोजक मिल गए। उन्होंने पहले तो हमसे शिकायत की कि आप के नहीं आने से कवि सम्मेलन अच्छे से नहीं हुआ। हमने उन्हें दोबारा कवि सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया। आयोजक ने जल्दबाजी में अगले दिन सुबह एक बार फिर कवि सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे ग्वालियर के लोगों ने अच्छे से सुना।

साहित्य ही विचार को जन्म देता है

उन्होंने कहा कि युवाओं को साहित्य पढऩा चाहिए, क्योंकि साहित्य ही विचारों को जन्म देता है और विचार क्रांति को। बिना साहित्य के अध्ययन के अच्छा ज्ञान हासिल नहीं किया जा सकता है। अच्छा पढऩे के साथ ही हमें अच्छा सुनने की आदत को भी जीवन में शामिल करना चाहिए।

कवि नहीं क्रिकेटर को करते हैं पसंद

अब दौर बदल गया है। 30-40 साल पहले लोग साहित्य पढऩा पसंद करते थे। अब लोगों की पसंद में बदलाव आ गया है। लोग कवि को नहीं क्रिकेटर को पसंद करते हैं। यही वजह है कि आज नई विचारधारा के साहित्यकार सामने नहीं आ रहे हैं।

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