
file photo of bank strike in Indore
भोपाल. हाल ही में देश के बैंक कर्मचारियों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के बाद यह बात हवा में गूंज रही है कि आखिर सरकारी क्षेत्र के बैंक कर्मचारी बैंकों के निजीकरण का क्यों विरोध कर रहे हैं? बैंकों का इतिहास (1969 से लेकर 2008 तक) बताता है कि पिछले करीब 39 साल में 40 निजी क्षेत्र के बैंक दिवालिया घोषित हो गए। इससे बैंकिंग सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई। इस मामले में बैंक कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार इस बार दो सरकारी क्षेत्र के निजीकरण को लेकर संसद में बिल लाने जा रही है। यदि ऐसा होता है तो कई लोगों का रोजगार छिन जाएगा। बैंकिंग सेवाओं में भारी कमी आ जाएगी। निजी क्षेत्र के बैंक आम आदमी को सेवा देने में पीछे हो जाएंगे। वे सिर्फ कॉर्पोरेट सेक्टर की ही सेवा कर पाएंगे। हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो स्टेट लेवल बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की बैठक में सरकारी बैंकों की तारीफ की है।
दरअसल सरकार ने अपने बजट में दो बैंकों के निजीकरण संबंधी घोषणा की है। इसके लिए बैंकिंग कानून (संशोधन) बिल 2021 संसद में आने वाला है। यदि ये बिल पास हो जाता है तो सार्वजनिक क्षेत्र की दो बैंक (अभी नाम सामने नहीं आए) और कम हो जाएगी। अभी सरकारी क्षेत्र की देश में 12 बैंक संचालित हो रही है। इसी का बैंक कर्मचारी विरोध कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दो दिन तक बैंकों में हड़ताल करके ताले नहीं खुलने दिए थे। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2008 से 2020 तक सार्वजनिक क्षेत्र के 15 बैंकों का विलय हुआ है। पहले सरकारी क्षेत्र के 27 बैंक हुआ करते थे।
बैंकों की स्थिति
1.18 लाख शाखाएं देश में
7900 शाखाएं मध्यप्रदेश में
500 शाखाएं राजधानी भोपाल में
इन बैंकों का हुआ मर्जर
-इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का मर्जर
-केनरा बैंक में सिंडीकेट बैंक का मर्जर किया
-स्टेट बैंक के 7 एसोसिएट्स बैंक का मर्जर किया
-यूनियन बैंक में आंध्रा बैंक एवं कॉर्पोरेशन बैंक का मर्जर
-बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक एवं देना बैंक का मर्जर
-पीएनबी में ओरिएंटल बैंक और युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का मर्जर
इन बैंकों का नहीं हुआ विलय
सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, यूको बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ इंडिया आदि।
कर्मचारियों में भय
बैंक कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों में आम जनता का रखा पैसा सुरक्षित है। निजीकरण से इन पैसों की सुरक्षा की गारंटी नहीं रहेगी। निजी क्षेत्र के लोग जनता के पैसों का उपयोग कॉर्पोरेट घरानों को देने में करेंगे। साथ ही सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उनका कहना है कि जनधन योजना में देश में करीब 44 करोड़ खाते खोले गए जिसमें 40 करोड़ से ज्यादा सरकारी बैंकों में खोले गए। नोटबंदी के दौरान 50 दिन में जितना पैसा आया वो सरकारी बैंकों के माध्यम से ही काउंट किया गया।
सरकार का तर्क
बैंकों के निजीकरण को लेकर सरकार का तर्क है कि उसका काम व्यवसाय करना नहीं है। हम (सरकार) इन बैंकों की सरकारी अंशपूंजी बेचकर देश के विकास में लगाएंगे।
सरकारी बैंक की अहमियत
यदि किसी बैंक में सरकारी अंशपूंजी 50 प्रतिशत से ज्यादा है तो सरकारी कहलाएगा और यदि अंशपूंजी 50 प्रतिशत से नीचे पहुंचती है तो उसका स्वरुप बदल जाएगा। देश में अभी सरकारी, निजी क्षेत्रों के बैंकों के अलावा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, कॉपरेटिव बैंक, स्माल बैंक, इंडिया पोस्ट बैंक संचालित हो रहे हैं। इंडिया पोस्ट बैंक की खासियत यह भी है कि यदि आपका किसी बैंक में खाता है और आपके पास आधार कार्ड है तो देश के कुछ चुनिंदा पोस्ट ऑफिस में जाकर आप अपने खाते से 1000 रुपए सिर्फ अंगूठा लगाकर पोस्ट ऑफिस से ही नकद ले सकते हैं।
'बड़ी गलतफहमी है कि बैंकों के निजीकरण होने से ग्राहकों को अच्छी सेवा मिलेगी। निजी बैंक सिर्फ सभ्रांत वर्ग के ही होकर रह जाएंगे। आम आदमी, खेतिहर, मजदूर को सेवाएं नहीं मिल सकेगी। बैंकों में जमा राशि की सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।'
वीके शर्मा, महासचिव, मप्र बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन
'बैंकों के प्रायवेटीकरण से आम जनता को नुकसान उठाना पड़ेगा। छोटे खाताधारकों की सेवाएं तो लगभग बंद ही हो जाएगी। गरीब वर्ग सरकारी योजनाओं से वंचित हो जाएगा। हायर एंड फायर का दौर शुरू हो जाएगा।'
मदन जैन, महासचिव, एमपी
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन
Published on:
23 Dec 2021 08:20 pm
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