23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

किसान आंदोलन में सुप्रीम कोर्ट की गुणवत्ता पर भी खड़े हो रहे सवाल- कक्काजी

- सुप्रीम कोर्ट कमेटी पर किसान नेता शिवकुमार कक्काजी ने उठाए सवाल

3 min read
Google source verification
kissan.png

इंदौर. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमेटी के सदस्य शिवकुमार शर्मा (कक्काजी) ने सुप्रीम कोर्ट की गुणवत्ता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट किसान आंदोलन को लेकर जो भी फैसला करेगा उसे मान्य किया जाएगा। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में शामिल राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष कक्काजी १५ फरवरी को खरगोन में होने वाली किसानों की महापंचायत में शामिल होने के लिए इंदौर आए। रविवार को उन्होंने प्रेस कांफे्रस करते हुए प्रदेश के हर जिले में किसान महापंचायत करने का दावा भी किया।

उन्होंने कहा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक जज के खिलाफ एक केस में गंभीर आरोप लगे फिर उन्होंने ही उसकी सुनवाई की और बाद में रिटायर होने के बाद राज्यसभा के सदस्य हो गए। इस तरह की घटनाओं से सुप्रीम कोर्ट की साख पर सवाल उठने लगे हैं। किसान नेता ने सवाल खड़ा किया कि सुप्रीम कोर्ट को क्या आकाशवाणी हुई थी कि पूरे देश में वे चार लोग जो कि पूरे समय किसान बिल के पक्ष में खड़े रहे वे ही विशेषज्ञ हैं। सुप्रीम कोर्ट कहती है कि हम कृषि कानूनों को समझना चाहते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट खुद कानूनविद है।

हमें सरकार ने दिल्ली बार्डर पर रोका
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के इक_ा होने को लेकर कक्काजी का कहना था कि किसान दिल्ली के बाहर धरना नहीं दे रहे हैं उन्होंने तो रामलीला मैदान में अनुमति मांगी थी। उन्हें तो केंद्र सरकार ने सड़कें खोदकर, सीमेंट के बैरीकेट लगाकर दिल्ली के बाहर रोका है, सरकार आगे जाने की अनुमति दे, वे लोग दिल्ली के अंदर रामलीला मैदान में जाकर धरना देंगे।

इसलिए खत्म होना चाहिए तीनों कानून
० कानून पूरी तरह किसान विरोधी हैं, इसमें एमएसपी का कोई उल्लेख नहीं है। यदि एमएसपी नहीं है तो किसानों को दर कैसे मिलेगी। सरकार लिखकर देने को तैयार है कि एमएसपी रहेगी तो बिल में क्यों नहीं लिख रही है।
० कानून किसानों से ज्यादा आम जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा। इसमें व्यापारियों के लिए स्टॉक लिमिट की बाध्यता को ही समाप्त कर दिया गया। जबकि किसानों के लिए लिमिट तय कर दी गई है। ऐसे में व्यापारी किसानों से फसलें लेकर उसे भाव बढऩे पर ही बेचेगा जिसमें आम लोगों को महंगा सामान मिलेगा। आटा ही १०० रुपए किलो मिलेगा।

० किसानों के लिए भूमि सुरक्षा की गारंटी नहीं है। यदि किसान २५ साल के लिए जमीन लीज पर देता है और उसमें एक हिस्से पर व्यापारी लोन लेकर गोदाम बनाता है। तो जमीन पर बने निर्माण के साथ जमीन भी बैंक में गिरवी रखी मानी जाएगी। ऐसे में व्यापारी ने पैसा नहीं जमा किया तो बैंक तो जमीन भी सीज करेगी। इसमें किसान के हाथ से जमीन ही चली जाएगी।

मप्र में बंद हो रही सरकारी मंडिया, निजी के लिए जमीन दे रही सरकार
कानून के मुताबिक निजी मंडी में व्यापारी को टैक्स नहीं लगेगा तो वो सरकारी मंडी में जहां टैक्स लगेगा वहां फसलें खरीदने क्यों आएगा। ऐसे में किसान फसल कैसे बेच पाएगा। वहीं उन्होंने आरोप लगाया कि मप्र सरकार के ही रिकॉर्ड के मुताबिक नया कानून आने के बाद प्रदेश की ४३ सरकारी मंडियां बंद हो चुकी हैं। वहीं ९० मंडियां जैसे तैसे चल रही हैं। कई निजी मंडी की अनुमति सरकार दे चुकी है। इंदौर के भी चार व्यापारियों को अनुमति दी गई है, जमीन भी सरकार उपलब्ध करा रही है लेकिन किसान आंदोलन के कारण इनका काम रुका हुआ है।

किसानों की मौत पर भी मौन है सरकार
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की मां की मृत्यु पर शोक प्रकट करने वाली भारत सरकार किसानों की मौत पर चुप रहती है। वहीं जब संसद में राहुल गांधी ने मृतक किसानों को मौन रहकर श्रद्धांजली दी तो भाजपा के सांसद शोर मचा रहे थे, मेज थपथपा रहे थे। ये किसानों के प्रति सरकार की निर्लज्जता है।

विदेशी न करें हस्तक्षेप, ये हमारे घर का मामला
वहीं किसान आंदोलन को लेकर विदेशी हस्तियों द्वारा ट्वीट करने पर शर्मा ने कहा कि हमारे लिए राष्ट्र पहले है। ये हमारे घर का मामला है। हमारी सरकार से हम चर्चा कर रहे हैं। इसे हम आपस में ही निपटा लेंगे।