
usha timouthi
इंदौर. साठ और सत्तर के दशक में फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग कर चुकी गायिका उषा टिमोथी शनिवार को शहर में थीं। इस मौके पर पत्रिका ने उनसे चर्चा की। उषा ने कहा कि पुरानी फिल्मों के गीतों में जज्बातों का बहुत ध्यान रखा जाता था। मैं बहुत कम उम्र में फिल्म इंडस्ट्री में आ गई थी तब मोहम्मद रफी के साहब के साथ फिल्म तकदीर में गाने का मौका मिला और उसके बाद उनके साथ कई फिल्मों में गाया। उनके साथ कई स्टेज शोज किए। रफी साहब ने मुझे सिखाया कि नगमों में किस तरह से जज्बात घोले जाते हैं ताकि गीत यादगार बन सके। वे डायरेक्टर से फिल्म की कहानी और गीत की सिचुएशन को अच्छी तरह समझने के बाद ही गीत गाते थे। रफी साहब की एक बात मुझे गुरुमंत्र की तरह याद रहेगी। उन्होंने कहा था कि उषा रियाज कभी मत छोडऩ और उनकी इस बात पर आज भी अमल करती हूं तभी इस उम्र में गा रही हूं।
बहुत मेहनत करवाई थी लगजा गले के लिए
उषा टिमोथी ने बताया कि मदनमोहन उनके घर के पास रहते थे। मैं जब आठ-नौ बरस की थी तब मुझे अपनी रिकॉर्डिंग्स में लेकर जाते थे। तभी मैंने देखा कि ‘वो कौन थी’ फिल्म के गाने बना रहे थे। जब लग जा गले... गाने की रिहर्सल चल रही थी और मदनमोहन लता जी से संतुष्ट नहीं थे। वे बार-बार रिहर्सल करवा रहे थे, लेकिन लता जी समझ नहीं पा रही थीं कि वे क्या चाहते हैं। अंत में मेहनत के बाद लता जी ने पूछा कि इसे कैसे गाया जाए। मदन जी ने बहुत लो पिच पर गाकर बताया और गीत क्लासिक बन गया।
वो मुकाम नहीं मिला जो चाहा था
उषा टिमोथी ने कहा कि वे जिस दौर में यानी साठ के दशक में फिल्मों में आईं वो दौर लताजी और आशा जी का पीक पीरियड था। उस दौर के संगीतकार इन दोनों के अलावा किसी और गायिका के बारे में सोचते ही नहीं थे। हर संगीतकर अपनी श्रेष्ठ रचना लता जी से ही गवाना चाहता था। इस बात का खामियाजा मुझे और उस दौर की कुछ और गायिकाओं को भुगतना पड़ा। हमें वो मुकाम नहीं मिला और उतने अच्छे गाने नहीं मिले जिनकी हमने तमन्ना की थी। इसके बावजूद लोगों का बहुत प्यार मिलता है।
Published on:
10 Sept 2017 06:39 pm
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