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क्या आप जानते हैं रामायण में क्या था लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का योगदान

उर्मिला ने जो बलिदान दिया शायद वह कोई भी स्त्री न कर पाए ...

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इंदौर. जब भी रामायण की बात की जाती है तो उसमें एक महान स्त्री उर्मिला का कहीं भी जिक्र नहीं आता है। उर्मिला ने जो बलिदान दिया शायद वह कोई भी स्त्री न कर पाए। उर्मिला लक्ष्मण की पत्नी और सीता की छोटी बहन थी। उर्मिला के बारे में ऐसी ही कई रोचक बातें इंदौर में हुई भागवत कथा के दौरान बताई गईं।

श्रीरंगनाथ राधाकृष्ण मंदिर की 15 वीं वर्षगांठ एवं होली पर्व के उपलक्ष्य में चाणक्यपुरी में भागवत कथा का आयोजन किया गया। इस दौरान वृंदावन के आचार्य नवलकिशोर महाराज ने बताया कि लक्ष्मण का विवाह सीता की छोटी बहन उर्मिला से हुआ था।

राम को कैकेयी के मांगे वरदान के कारण 14 वर्षों तक जंगल में रहना पड़ा। लक्ष्मण राम भक्त थे और हमेशा राम के साथ रहते थे, वे भी राम के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास पर चले गए, सीता ने भी राम के साथ जाने की जिद की और वो भी अपने पति राम के साथ वन गईं।

जब उर्मिला ने साथ जाने को कहा तो लक्ष्मण ने कहा की वो तो राम भैया और उनकी पत्नी सीता भाभी की देखभाल के लिए साथ में जा रहे हैं। उर्मिला को लेकर जाने से लक्ष्मण पर उर्मिला की जिम्मेदारी भी आ जाएगी।

इस तरह से लक्ष्मण जंगल में राम के साथ गए और अपनी पत्नी को साथ ले जाने से इनकार कर दिया। उर्मिला ने बिना किसी कारण के अपने पति से दूर रहकर अपने धर्म का पालन किया जो बलिदान उर्मिला ने दिया उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है।

नवलकिशोर महाराज ने बताई जीवन के लिए यह जरूरी बातें

नवलकिशोर महाराज ने इस दौरान जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें भी बताई। मुखिया होने का भ्रम पालने वाला संसार का सबसे बड़ा मूर्ख व्यक्ति होता है। सबसे बड़ा मुखिया होता है समय। समय का चक्र जब चलता है तो परिवर्तन करता है। हम सब समय के अधीन थे और समय के अधीन है। अच्छा समय मिले तो अच्छे कर्म करो, बुरे समय में सतकर्म ही साथ देते हैं।

आयोजनकर्ता चंदा शर्मा ने बताया कि दूसरे दिन कथा का शुभारंभ भागवत की पूजा-अर्चना कर किया गया। पंडितजी ने कहा कि यह संसार भोग भूमि है। इस जन्म में धन मिले तो धर्म करना, पाप की सजा इस जन्म में नहीं मिली तो उस जन्म में जरूर मिलेगी। जिस तरह हम भूमि में बीज बोते हैं, उसका फल तीन से चार माह में मिलता है। बीज जितना अच्छा बोया होगा, उतना ही अच्छा फल होगा। उसी तरह इस जन्म में धर्म मार्ग पर चलते हुए हम सतकर्म और पुण्यदान करते हैं तो उसका फल इस जन्म में तो मिलेगा ही, अगले जन्म में कई गुना अधिक मिलता है।