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करोड़ों की जमीन बाले-बाले हो गई निजी, अब फिर से होगी सरकारी

तहसीलदार ने जांच के बाद पकड़ा मामला, सौंपी रिपोर्ट

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करोड़ों की जमीन बाले-बाले हो गई निजी, अब फिर से होगी सरकारी

इंदौर। खेती के लिए सरकार ने समय-समय पर लोगों को पट्टे पर जमीन दी ताकि वे अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें। जमीन देते समय शर्त साफ थी कि वे उसकी खरीद-फरोख्त नहीं कर सकेंगे। जमीन के कीमती होते ही नीयत खराब हो गई और बिना अनुमति के बेच दी। जब नामांतरण की बारी आई तो ये घोटाला सामने आ गया। तहसीलदार ने उसे सरकारी घोषित करने की अनुंशसा की।

पिछले दिनों कलेक्टर निशांत वरवड़े ने आरओ की बैठक में अपने अधीनस्थों को साफ शब्दों में बोल दिया था कि सरकारी जमीन के मामलों को हल्के में ना लिया जाए। खासतौर पर तहसीलदार नामांतरण के समय खासी नजर रखें। इसके चलते खंडवा रोड पर आने वाले चिखली गांव का एक घोटाला पकड़ में आ गया। सिमरोल तहसीलदार मनीष श्रीवास्तव के सामने जमीन के नामांतरण का आवेदन आया। इस पर जब जांच कराई तो बटांकन का आंकड़ा देख आशंका हुई। जब जांच कराई तो नई कहानी निकलकर सामने आ गई। इसको लेकर श्रीवास्तव ने जमीन को सरकारी घोषित करने के लिए एसडीओ प्रतुल्ल सिन्हा को रिपोर्ट पेश कर दी।

पट्टे पर दी थी
उसके मुताबिक मामला चिखली के सर्वे नंबर ४३/५, ४३/३६, ४३/५१, ४३/४७ की कुल १६ एकड़ जमीन का है। सीलिंग एक्ट लागू होने पर १९७५ में सरकार ने जमीन को सरकारी घोषित कर दिया था। बाद में सरकार ने १९८५-८६ में ये जमीन निहालसिंह, मेघा गणेश कीर, रतनसिंह पिता कल्लू और शंकर शोभाराम को पट्टे पर ४-४ एकड़ जमीन दी थी। ये जमीन इंदौर में रहने वाले शेख सलीम और शेख इमरान ने खरीद ली। इसमें ४३/५ की जमीन को छोड़कर बाकी जमीन का नामांतरण भी हो गया।

सिर्फ शंकर पिता शोभाराम की जमीन रह गई थी जबकि जमीन की रजिस्ट्री भी हो गई। घोटाला पकड़ाने के बाद बेचने व खरीदने वालों को नोटिस दिया गया जिसमें वे नहीं बता पाए कि जमीन किसकी अनुमति से खरीदी-बेची गई। इसको लेकर तहसीलदार श्रीवास्तव ने महू एसडीओ प्रतुल्ल सिन्हा को रिपोर्ट बनाकर पेश कर दी जिसमें जमीन को सरकारी घोषित करने का कहा गया। इस मामले में सिन्हा भी सारा लेखा-जोखा जल्द ही कलेक्टर वरवड़े के सामने पेश करने जा रहे हैं। जहां से निर्देश के बाद में जमीन एक बार फिर सरकारी हो जाएगी।

कैसे गायब हुआ अहस्तांतरणीय
गौरतलब है कि सरकार जब भी जमीन पट्टे पर देती है तो उसकी कुछ शर्तें होती हैं। परिवार चलाने के लिए दी गई जमीन को पट्टाधारी बेच नहीं सकता है। इसके लिए सरकारी रिकॉर्ड में बकायदा शासकीय पट्टेदार व अहस्तांतरणीय लिखा जाता है। पुराने रिकॉर्ड में बकायदा उल्लेख है, लेकिन कुछ समय पहले पटवारी ने बाले-बाले दोनों शब्दों को विलोपित कर दिया। ऐसा करने से पहले उसे तहसीलदार का आदेश लेना होता है, लेकिन उसका कहीं उल्लेख नहीं है।

बटांकन में भी सामने आई गड़बड़ी
जमीन का घोटाला पकड़ में आने के बाद जांच की गई तो कलाकारी सामने आई। पटवारी ने जमीन की खरीद-फरोख्त करने में खुलकर मदद की। पट्टे की जमीन का फर्जी तरीके से बटांकन भी कर दिया गया। नया नंबर आने के बाद में जमीन की खरीद-फरोख्त की गई।