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पत्नी के जेवर बेचकर सुधीर कर रहे लोगों के कष्ट दूर

locationइंदौरPublished: Oct 04, 2021 11:32:49 am

Submitted by:

Subodh Tripathi

बचपन से ही सेवा करने की भावना थी, जिसके चलते उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल बनवाया, कुष्ठ रोगियों की सेवा की, जिससे उन्हें ऐसा एहसास हुआ जैसे भगवान मिल गए हैं।

पत्नी के जेवर बेचकर सुधीर कर रहे लोगों के कष्ट दूर

पत्नी के जेवर बेचकर सुधीर कर रहे लोगों के कष्ट दूर

इंदौर. शहर के एक व्यक्ति ने दीन-दुखियों की सेवा करने के लिए पहले डॉक्टरी करना छोड़ दिया, फिर लोगों के कष्ट दूर करने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर तक बेच दिए। हाल यह है कि जब तक वे पीडि़त के कष्ट दूर नहीं कर देते हैं, तब तक उन्हें चेन नहीं आता है।

13 साल की उम्र से सेवा की भावना


हम बात कर रहे हैं, इंदौर निवासी सुधीर गोयल की, जिनकी बचपन से ही सेवा करने की भावना थी, जिसके चलते उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल बनवाया, कुष्ठ रोगियों की सेवा की, जिससे उन्हें ऐसा एहसास हुआ जैसे भगवान मिल गए हैं। मानव सेवा करने के लिए उन्होंने आश्रम बनवाया, जिसमें वर्ष 1987 में मदर टेरेसा आई थी और वर्ष 1988 में बाबा आम्टे आए थे। उन्होंने बताया कि मदर टेरेसा और बाबा आम्टे से मिलकर मेरी जिंदगी ही बदल गई, मुझे लगा कि जब विदेश से आकर मदर टेरेसा भारतीयों की सेवा कर सकती है तो मैं क्यों नहीं कर सकता।
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सेवा के लिए बंद कर दिया बिजनेस


सुधीर गोयल का अच्छा खासा बिजनेस था, लेकिन उन्होंने सेवा भावना के चलते उसे बंद कर दिया। फिलहाल वे उज्जैन स्थित सेवाधाम आश्रम के प्र्रमुख हैं, उनका जन्म इंदौर में हुआ है, और वे अब दीन-दुखियों के नाम अपना जीवन समर्पित कर चुके हैं।

डॉक्टर बनना था, कर रहे सेवा


सुधीर ने बताया कि वे डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन प्रि मेडिकल टेस्ट में सिलेक्शन नहीं हुआ तो वर्धा गया, वहां सिलेक्शन हो गया, वहां पता चला विनोबा भावे आए हैं, उनसे मिलने गया, मिला तो उन्होंने कहा डॉक्टर क्यों बनना, जाओ ऐसे ही मानव सेवा करो, उनकी बात सुनकर मैं डॉक्टरी का सवना छोड़कर यहां आ गया और अपने स्तर पर सेवा शुरू की।
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पत्नी के जेवर बेचकर बनाया आश्रम


सुधीर गोयल ने पीडि़तों की सेवा करने के लिए जब काम करने का निश्चिय किया, तो पहले अंबोदिया में एक जमीन खरीदी, वहां उस समय जंगल हुआ करता था, 1989 में आश्रम शुरू किया तो लोगों को भरोसा नहीं हुआ कि एक व्यापारी पूरी तरह कैसे समाज सेवा कर सकता है, मैंने अपना व्यापार बंद कर दिया और उस पैसे से आश्रम शुरू कर दिया, कुष्ठ रोगियों को यहां लाया, उनकी सेवा की, अपने हाथों से मरहम पट्टी की, उस समय मेरी पत्नी मेरे साथ खड़ी रही, उन्होंने जेवर बेच आश्रम में सहायता की, उन्होंने बताया कि इस काम की भी लोगों ने अलोचना की, लेकिन जब तक आप सही हैं आपको कोई हिला नहीं सकता है, फिर जितनी आलोचनाएं हुई मेरा काम लगातार बढ़ता ही गई, अब तक करीब 8 हजार लोगों की मदद कर चुके हैं।

इस आश्रम में अब तक कुष्ठ रोगी, टीबी के मरीज, अंधेपन के शिकार, गूंगे बहरे, मानसिक रूप से विक्षिप्त, गर्भवती महिलाएं, बेसहारा महिलाएं आदि आकर अपना उपचार करवा चुके हैं, सुधीर मानव सेवा को एक जन आंदोलन बनाना चाहते हैं।
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