
जैन साधु 24 घंटे में केवल एक बार करते हैं अन्न-जल ग्रहण, परिवार को भी करना पड़ता है इन कठोर नियमों का पालन
इंदौर. जैन मुनि किसी के आमंत्रण पर आहार के लिए घर नहीं जाते। दिगंबर जैन मुनियों को नवधा भक्ति से आमंत्रित किया जाता है। नवधा भक्ति नौ प्रकार की प्रक्रिया है। इनके पूरा होने के बाद भक्त मन, वचन और कायाशुद्धि बोलकर मुनिवर से आहार-जल धारण करने की विनती करते हैं। आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार उदय नगर इंदौर से हुआ है उदय नगर इंदौर से बंगाली चौराहा होते हुए तिलक नगर पहुंचे।
24 घंटे में एक बार करते हैं आहार
आहारचर्या में नवधा श्रद्धालुओं द्वारा साधुओं को आहार दान किया जाता है। जैन साधु 24 घंटे में एक बार अन्न-जल ग्रहण करते हैं। जैन मुनि खड़े होकर बिना किसी पात्र के हाथों में आहार लेकर नि:स्वाद होकर आहारचर्या करते हैं।
7 दिन शिखर यात्रा
शिखरजी यात्रा के लिए विद्यासागर एक्सप्रेस ट्रेन पुस्तक का विमोचन किया गया। 21 से 27 जनवरी तक यात्रा रहेगी। आचार्यश्री विद्यासागर को आहारचर्या आलोक-आकाश सिंह जैन (सिंघई) कोयला वाले परिवार ने कराई। पत्रिका ने आहारचर्या के नियमों की जानकारी प्राप्त की। इसके लिए उसी परिवार का चयन किया जाता है, जो आहार के साथ उसे देने के कठोर नियमों का पालन करता है।
ये है प्रक्रिया
पडग़ाहन : मुनियों को आमंत्रित किया जाता है।
उच्चासन : मुनिवर से बैठने का आग्रह किया जाता है।
पाद प्रक्षालन : मुनिवर के चरण धोकर भक्त माथे पर लगाते हैं।
पूजन : मुनिश्री की पूजा-अर्चना की जाती है।
आहार आग्रह : मुनिश्री को आसन छोडक़र आहार की मुद्रा ग्रहण करने का आग्रह किया जाता है।
मनशुद्धि : भक्त मुनिवर को अपने मन की शुद्धि से अवगत कराते हैं।
वचन-विधि कायाशुद्धि : भक्तजन अपने वचन एवं काया की शुद्धि बताते है।
आहार-जलशुद्धि : आहार एवं जल को परखकर उसकी शुद्धि के बारे में बताया जाता है।
दाता के प्र्रमुख नियम
नशे व रात्रि भोजन का त्याग, जिनेंद्र देव का दर्शन।
शुद्ध धोती व दुपट्टा सिर ढंककर पहनना।
चौकी में बार-बार दाताओं का परिवर्तन नहीं।
मन शांत, भाव शुद्ध व दयालुता का पालन।
दाता खिसककर उठ-बैठ नहीं सकते।
अनावश्यक बोलने पर पाबंदी।
फलों व नमक को प्रासुक करके रखें, जिससे अपका दोष न हो।
वस्त्र, भूमि, बाल व अंगो में हाथ लग जाने पर धोना।
प्रकाश की तरफ आहार रखने के लिए चौकी-पाटा हो।
शुद्धि बोलते समय मुख बर्तनों से दूर हो व हाथ में आहार सामग्री न हो।
नाखून बड़े, नेल पालिश से रंगे नहीं होना चाहिए।
सौंदर्य ह्रश्वा्रसाधन भी नहीं।
चौके में कुएं के प्रासुक पानी का ही प्रयोग।
आचार्यश्री विद्यासागर ने उदय - नगर दिगंबर जैन मंदिर में शुक्रवार को धर्मसभा में कहा, जहां पहचान की बात होती है तो भाव-भाषा-गुणों के माध्यम से होती है। किसी दोहाकार ने एक दोहे से इसे अभिव्यक्त करने का प्रयास किया पानी भरते देव हैं, पानी भरते देव हैं, वैभव जिनका दास, मृग-मृगेंद्र मिल बैठते जहां दया का वास। मां के भाव समझने के लिए बच्चे को विद्यालय में जाने की जरूरत नहीं है। जहां भाषा भाव की अभिव्यक्ति होती है, वहां मातृभाषा की बात आती है। हम हिंदी भाषा भूलकर दासत्व की भाषा अंग्रेजी को अपना रहे हैं, जो गलत है। जब सपने मातृभाषा में आते हैं तो आप यों अंग्रेजी में बात करते हैं। मातृभाषा को अपनाकर सही मायने में मानव बन जाएं।
सुबह आचार्यश्री और उनका संघ लवकुश स्कूल से मंदिर पहुंचा। प्रतिभा प्रतीक्षा की बच्चियों ने मातृभाषा पर लघु नाटिका का प्रदर्शन किया। उसे देखकर आचार्यश्री ने कहा, बहुत छोटा सा संवाद था, जो बहुत मार्मिक है। जो रात 12 बजे भी नींद में भी बुलवा ली जाए, उसी का नाम मातृभाषा है। आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन मुकेश, विजय, संजय पाटोदी इंदौर, बाबूलाल पहाडिय़ा हैदराबाद, प्रदीप सनतकुमार नोएडा ने किया।
आचार्यश्री का पूजन छत्रपति नगर कॉलोनी के विपुल बांझल, कैलाश जैन नेताजी, राजेंद्र नायक एवं सैटेलाइट कॉलोनी के सदस्यों ने किया। डीआइजी रुचिवर्धन मिश्रा भी आशीर्वाद लेने पहुंचीं। आचार्यश्री ने शिष्य मुनिश्री धीरसागर को समाधि दिवस पर स्मरण किया। संचालन ब्रह्मचारी सुनील भैया ने किया।
Published on:
11 Jan 2020 04:03 pm
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