
MOTHERS DAY : इस मां ने बदली बेटियों को दुनिया में न लाने की सोच
इंदौर. बच्चे को जन्म देने वाली मां पहली शिक्षक होती है, लेकिन किलकारी गूंजने से पहले ही किसी मासूम की सांसें छिन ली जाएं तो इससे बड़ा दु:ख किसी मां को नहीं हो सकता। बेटे और बेटी में अंतर मानने वाले आज भी अपने घर में बेटियां नहीं चाहते। इसके लिए वे किसी भी हद तक गिरने में गुरेज नहीं करते। ऐसी मानसिकता वालों को अपना ही उदाहरण देकर काउंसलिंग करने वाली डॉक्टर भी मां से कम नहीं है।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमित्रा यादव हजारों बेटियों को जन्म दिलाने वाली ऐसी ही मां बनी हैं। डॉ.यादव ने बताया, गायनेकोलॉजिस्ट बनना मेरे लिए सबसे अच्छा अहसास है। एमबीबीएस करते समय सोचा नहीं था कि किसी मां और उसके परिवार को खुशियां देने से इतना सुकून मिल सकता है। मैं और मेरी तीनों बहनें डॉक्टर हैं। तब हमारे परिवार में लड़कियों को इतना पढ़ाया-लिखाया नहीं जाता था। हर कोई यही कहता था कि बेटियों की शादी में दहेज के लिए पैसे जुटाओ। पढ़ाई पूरी हुई तो पापा ने पहली सीख दी कि कुछ भी हो जाए मगर किसी की जान बचाने में कोई कोताही मत बरतना। पीसीपीएनडीटी एक्ट के बावजूद कई परिवारों में बेटों की चाह रहती है।
महिला होने के नाते मैं जान सकती हूं कि सबसे अहम फैसला उस मां का होता है, जिसकी कोख में जिंदगी पल रही है। डिलिवरी से पहले जब भी ऐसे परिवार बात करने आते तो उन्हें कानून की जानकारी देने से पहले समझाइश देती हूं। मैं बताती हूं कि परिवार की तीसरी बेटी होने के बाद भी अपने पैरों पर खड़ी हूं। आस-पास सभी डॉक्टर और सिस्टर लडक़ी है तो क्या आप अपनी बेटी को इस लायक नहीं बना सकते। यकीन मानिए, वह आपका ही सहारा बनेगी। मुझे खुशी है कि कई परिवारों ने मेरी बात मानकर न सिर्फ बेटियों को अपनाया, बल्कि वे उन्हें बेटियों की तरह ही पाल रहे हैं। डॉ. यादव ने बताया, वे अपने सहयोगी स्टाफ को भी यही सलाह देती हैं कि गर्भवती महिला के इलाज व देखरेख के साथ परिजन की भी काउंसलिंग जरूर करें। करीब तीन दशक के दौरान जन्मी बच्चियों के परिजन जब कभी मिलने आते हैं तो वे उस पल जिक्र करना नहीं भूलते जब वे अपनी नन्ही कली को दुनिया में नहीं लाने की सोच रहे थे।
-डॉ. सुमित्रा यादव
Published on:
12 May 2019 11:54 am
बड़ी खबरें
View Allइंदौर
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
