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तीन तलाक : शाहबानो के नाती बोले- नया कानून बढ़ाएगा उलझन, कोई पुरुष जेल से आएगा तो क्या पत्नी को दोबारा रखेगा?

तीन तलाक बिल पास होने के बाद ‘पत्रिका’ ने उनके नाती जुबेर अहमद से चर्चा की।

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इंदौर

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Hussain Ali

Jul 31, 2019

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तीन तलाक : शाहबानो के नाती बोले- नया कानून बढ़ाएगा उलझन, कोई पुरुष जेल से आएगा तो क्या पत्नी को दोबारा रखेगा?

इंदौर. राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास हो गया है। बिल के पक्ष में 99 और विपक्ष में 84 वोट पड़े हैं। भारत में तीन तलाक के खिलाफ इंदौर की शाहबानो ने सबसे पहले आवाज उठाई थी। पांच बच्चों की मां शाहबानो को उनके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। शाहबानो ने खुद और बच्चों के भरण पोषण के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया क्योंकि उनके लिए बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा था। तीन तलाक बिल पास होने के बाद ‘पत्रिका’ ने उनके नाती जुबेर अहमद से चर्चा की।

जुबेर का कहना है कि तलाक की प्रक्रिया को तो सरकार कानून के दायरे में ला रही है, लेकिन नानी की असली लड़ाई तो भरण-पोषण के लिए थी। नानी शाहबानो ने जिस मुद्दे पर लड़ाई लड़ी, वह राज्यसभा में पारित हुए तीन तलाक विधेयक से पूरी नहीं हुई है। नए कानून से सामाजिक उलझन बढ़ जाएगी। भरण-पोषण मजिस्ट्रेट तय करेंगे। मैहर की न्यूनतम राशि तय की जाती या उसमें वृद्धि का प्रावधान होता तो ज्यादा लाभ होता। कानून गलत करने वाले को सजा दे रहा है, लेकिन बुराई को खत्म नहीं कर रहा है।

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हमारे समाज में तलाक होने पर मैहर की राशि अहम होती है। नानी ने 1978 से लड़ाई लड़ी, तब वे 62 साल की थीं। मैहर की राशि का प्रावधान होता तो शायद नानी का सपना पूरा हो जाता। वे अपनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गई। उन्हें 1985 में शीर्ष कोर्ट से न्याय मिला। 1992 में उनकी मौत हो गई। तलाक की प्रक्रिया को कानूनी जामा पहनाया जा रहा है तो भरण-पोषण वाले हिस्से को मजबूत करना चाहिए, क्योंकि पूरा मसला तलाक के बाद महिलाओं की स्थिति को लेकर शुरू होता है। कोई पुरुष पत्नी की शिकायत पर जेल होकर बाहर आएगा तो क्या वह दोबारा उसे रखेगा?

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तीन साल तक की हो सकती है कैद

- एक साथ तीन तलाक कहकर तलाक लेना संज्ञेय अपराध।

- लिखकर देने, चिट्ठी भेजने, फोन पर, वॉट्सऐप से भी तीन तलाक अब अपराध

- तीन तलाक देने वाले पति को तीन वर्ष तक की जेल की सजा, जुर्माना भी।

- पीडि़त या परिवार के सदस्य ही दर्ज करा सकते हैं एफआईआर।

- बिना वारंट गिरफ्तारी, मजिस्ट्रेट पत्नी का पक्ष जानने के बाद ही जमानत दे सकते हैं।

- मजिस्ट्रेट को सुलह कराने का हक, फैसले तक बच्चा मां के पास रहेगा। पति पत्नी-बच्चे का गुजारा भत्ता देगा। यह मजिस्ट्रेट तय करेंगे।