
triple talaq case
इंदौर। केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में तीन तलाक के खिलाफ दंड के प्रावधान वाला बिल (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) आज संसद में पेश किया गया। इस बिल के प्रावधान के मुताबिक अगर इस्लाम धर्म में कोई भी शख्स अपनी पत्नी को फौरन तीन तलाक किसी भी माध्यम से देगा तो उसे तीन वर्ष तक की कैद हो सकती है। लोकसभा में बिल पेश होने के बाद इसका राष्ट्रीय जनता दल और बीजू जनता दल समेत कई पार्टियों ने इसका कड़ा विरोध किया। इसी कड़ी में आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी महिला की कहानी जिसने सबसे पहले 3 तलाक के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का दरवाजा खटखटाया था। इंदौर शहर में रहने वाली एक साधारण महिला शाहबानो वो पहली मुस्लिम महिला थी जो तीन तलाक का दर्द लेकर कानून के दर पर पहुंची थी। शाहबानो ने ना केवल तीन तलाक की ये लड़ाई लड़ी थी बल्कि जीती भी थी। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार और मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने शाहबानो से उनका हक छीन लिया, आईए जानते है शाहबानो की कहानी...
हक में आया था फैसला
1978 में जब शाहबानो 62 साल की थी तब उनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां शाहबानो उस वक्त इस फैसले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। लेकिन मुस्लिम फैमिली लॉ के अकॉर्डिंग पति पत्नी की रजामंदी के खिलाफ जाकर भी तीन तलाक का कदम उठा सकता है। तब शाहबानो ने अपने और अपने बच्चों के भरण पोषण का हक मांगने के लिए कानून के दरवाजे पर दस्तक दी। सात साल बाद उच्चतम न्यायालय ने शाहबानो के हक में फैसला सुनाया। उस वक्त कोर्ट ने इस प्रकरण का निर्णय धारा 125 के अंतर्गत लिया था।
मुस्लिम समाज में मची थी खलबली
शाहबानो के हक में आए इस फैसले ने रूढ़िवादी मुस्लिमों के बीच खलबली मचा दी। उन्होंने इसे अपने खिलाफ माना और जमकर विरोध किया। उस वक्त मुस्लिमों के नेता एम जे अकबर और सैयद शाहबुद्दीन ने ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन कर फैसला वापस लेने की मांग की। संगठन के विरोध को देख राजीव गांधी सरकार ने उनकी मांगे मान ली और इस फैसले को धर्म निरपेक्षता का नाम लेकर लोगों के सामने लाया गया।
बन गया मुस्लिम महिला कानून
उस वक्त राजीव गांधी की सरकार को बहुमत प्राप्त था इसलिए सुप्रीम न्याय के तत्कालिन डिसिजन को उलट कर मुस्लिम महिला कानून 1986 में आसानी से पारित कर दिया गया। इस कानून के अनुसार कोई मुस्लिम तलाकशुदा महिला यदि गुजारे की मांग करती है तो उसके पति को गुजारा देने का दायित्व इद्दत के समय तक ही बांध दिया गया है।
Published on:
28 Dec 2017 04:48 pm
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