महाराष्ट्र सरकार ने दुनिया के पहले हाइपरलूप परिवहन प्रणाली की स्थापना की घोषणा की है। इस प्रणाली से पुणे को मुंबई से जोड़ा जाएगा और दोनों शहरों के बीच दूरी महज 35 मिनटों में तय की जा सकेगी, जिसे सड़क मार्ग से पूरा करने में फिलहाल 3.5 घंटों से अधिक लगते हैं। महाराष्ट्र ने मुंबई-पुणे हाइपरलूप परियोजना के वर्जिन हाइपरलूप वन-डीपी वर्ल्ड (वीएचओ-डीपीडब्ल्यू) कंसोर्टियम को ऑरिजिनल प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट (ओपीपी) नियुक्त किया है।
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इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन तकनीक का इस्तेमाल
केलिफरेनिया के लांस एजेलिस स्थित मुख्यालय वाली कंपनी वर्जिन हाइपरलूप हन का कहना है कि परिवहन के इस साधन में यात्री या माल को हाइपरलूप वाहन में चढ़ाया जाता है, जो कम दवाब वाले ट्यूब में इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन के माध्यम से तीव्रता से चलता है। हाइपरलूप वाहन लिनियर इलेक्ट्रिक मोटर से गति हासिल करता है, जो पारंपरिक रोटरी मोटर का सुलझा हुआ संस्करण है।
कैसे करता है काम ?
एक पारंपरिक इलेक्ट्रिक मोटर के दो प्रमुख हिस्से होते हैं – एक स्टेटर (यह हिस्सा स्थिर होता है) और एक रोटर (यह हिस्सा घूमता है या गति हासिल करता है)। जब स्टेटर में बिजली आपूर्ति की जाती है तो यह रोटर को घुमाता है, इससे मोटर चलती है। वहीं, लिनियर इलेक्ट्रिक मोटर में यही दोनों प्रमुख हिस्से होते हैं। लेकिन इसमें रोटर घूमता नहीं है, बल्कि यह सीधे आगे की तरफ बढ़ता है, जो स्टेटर की लंबाई के बराबर चलता है। वर्जिन के हाइपरलूप वन सिस्टम में स्टेटर्स को ट्यूब में लगा दिया जाता है और रोटर को पॉड पर लगा दिया जाता है, और पॉड ट्यूब के अंदर गति कम करने के लिए स्टेटर से रोटर को दूर करता है।
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वर्जिन हाइपरलूप ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि यह वाहन ट्रैक के ऊपर चुंबकीय उत्तोलन ( Magnetic Levitation ) के माध्यम से तैरता है और किसी हवाई जहाज जितनी गति हासिल कर लेता है, क्योंकि ट्यूब के अंदर एयरोडायनेमिक ड्रैग (हवा का अवरोध) काफी कम होता है। कंपनी ने कहा कि पूरी तरह से स्वायत्त हाइपरलूप सिस्टम्स को खंभों पर या सुरंग बनाकर स्थापित किया जाएगा, ताकि ये सुरक्षित रहे और किसी जानवर आदि से किसी प्रकार के नुकसान की संभावना ना हो।
क्या होगा हाइपरलूप से फायदा
जब हमारी सड़कें और हवाई अड्डों पर तेजी से भीड़ बढ़ रही है तो ऐसे में हाइपरलूप परिवहन के एक तेज साधन की पेशकश के अलावा कई अन्य फायदे भी मुहैया कराएगा। इस प्रणाली का पर्यावरण पर असर काफी कम होगा क्योंकि इससे कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन या शोर पैदा नहीं होगा। वर्जिन हाइपरलूप वन ने पूर्ण पैमाने पर (फुल स्केल) हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक का निर्माण किया है, जिस पर अब तक सैकड़ों परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे किए गए हैं।