
acharya vidyasagar biography news in hindi
जबलपुर। सूर्योदय की किरणों के साथ टूटते सन्नाटे के बीच संगीममय भक्ति की धुन और श्वेत वस्त्रधारी पुरुष और पीताम्बरधारी मातृशक्ति। हाथों में आस्था के साथ सजी पूजन की थाली और शांतिधारा, अभिषेक के लिए उत्सुक श्रावक। चेहरे पर आध्यात्मिक भाव और मंगल प्रवचन से धर्म ज्ञान को आत्मसात करने की जिज्ञासाएं। अवसर था पर्युषण पर्व के पहले दिन शनिवार को दिगम्बर जैन मंदिरों में आयोजित कार्यक्रमों का। आचार्यो-मुनिवरों के सान्निध्य में श्रावकों ने उत्तम क्षमा धर्म की साधना की। आइये इसी मौके पर हम आपको आचार्य विद्यासागर महारज से जुडी रोचक कहानी कि वे कैसे साधारण बालक से आचार्य बने।
आचार्य विद्यासार जी को देश-दुनिया के लोग जानते हैं। उनके संघर्ष और तप से पूरी दुनिया प्रभावित है। मंगलवार को वे जबलपुर आए तो हजारों की संख्या में श्रावक उनके दर्शन के लिए पहुंच गए। ऐसे में हम यहां आचार्य श्री के जीवन से जुड़ी जानकारी साझा कर रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946, शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मति ने उनका नाम विद्याधर रखा था। कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण जी महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया। इसके बाद जो कठिन साधना का दौर शुरू हुआ तो आचार्य श्री ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.।
ऐसे बने विद्या के सागर
कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए आचार्यश्री ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवार ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया।
कठिन तपस्या
ठंड, बरसात और गर्मी से विचलित हुए बिना आचार्य श्री ने कठिन तप किया। उनका त्याग और तपोबल आज किसी से छिपा नहीं है। इसी तपोबल के कारण सारी दुनिया उनके आगे नतमस्तक है। 50 वर्ष से वे एक महान साधक की भूमिका में हैं। उनके बताए गए रास्ते पर चलकर हम देश तथा संपूर्ण मानव जाति की भलाई कर सकते हैं।
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कई भाषाओं का ज्ञान
आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। समाज को नई दिशा दी। आचार्य श्री संस्कृत व प्राकृत भाषा के साथ हिन्दी, मराठी और कन्नड़ भाषा का भी विशेष ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएं भी लिखी हैं। इतना ही नहीं पीएचडी व मास्टर डिग्री के कई शोधार्थियों ने उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीशह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक पर अध्ययन व शोध किया है।
Published on:
27 Aug 2017 03:27 pm
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