6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

आचार्य विद्यासागर महाराज ने पेट्रोल खपत से दी बड़ी सीख

आचार्य विद्यासागर महाराज ने पेट्रोल खपत से दी बड़ी सीख

2 min read
Google source verification
Acharya Vidyasagar Maharaj

Acharya Vidyasagar Maharaj

जबलपुर। दयोदय तीर्थ गौशाला जबलपुर आचार्य विद्यासागर महाराज ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा आप जब गाड़ी खरीदते हैं देख समझकर - शोध कर अपने पसंद की बहुत अच्छी गाड़ी खरीदते हैं लेकिन जब गाड़ी चलती है तो पता चलता है कि पेट्रोल की खपत बहुत है लेकिन गाड़ी में कोई खराबी नहीं है। पेट्रोल की ज्यादा खपत ड्राइवर का सावधानीपूर्वक वाहन चलाने के कारण हो रही है, जिस तरह ड्राइवर असावधानी पूर्वक वाहन चलाता है तो पेट्रोल ज्यादा लग जाता है उसी तरह आयु कर्म भी हमारा पेट्रोल है। अब हम अपने जीवन को कितनी सावधानी पूर्वक चलाते हैं। यह हमारे कर्मों पर निर्भर करता है यह संयम के माध्यम से हमें ज्ञात होता है।

हमारी असावधानी कहां है ? हम दैनिक व्यवहार में कार्य करते हैं प्रयास होता है पूर्ण सावधानी के साथ कार्य करना। दर्पण में हम दिखते तो साफ-सुथरे हैं लेकिन भीतर से हम साफ-सुथरे नहीं होते हमें अपने कर्मों से शरीर के अंदर भी साफ सफाई करनी चाहिए। कुंदकुंद देव ने कहा है कि पाप बंध से स्वयं एवं दूसरों को बचाना चाहिए।

हमे भोजन, कर्म ,कार्य जो भी करते हैं इस पर ध्यान देना चाहिए , आयु कर्म का उपयोग करना चाहिए दुरुपयोग नहीं, समयसार ग्रंथ में लिखा है , अकाल मृत्यु क्यों होती है ,श्वास की दुर्बलता से अकाल मृत्यु हो जाती है। हमारे ग्रंथों में तो शयन विधि का भी अध्ययन किया गया है , मूलाचार ग्रंथ में लिखा है की कषाय के साथ भोजन करने से भोजन अच्छा भी हो पर यदि भोजन करते समय विचार अच्छे नहीं है या क्रोध- कषाय के साथ भोजन किया जाए तो वह पाचन में गड़बड़ी उत्पन्न करता है ।

अनेक प्रकार के भावों से पाप का बंध होता है। आजकल तो लोग व्यापार धंधे में झूठ भी बड़ी सावधानी से बोलते हैं ताकि पकड़े ना जाए लेकिन यदि ग्राहक पक्का बनाना है तो झूठ नहीं सच का सहारा लेना चाहिए , यदि ग्राहक की तकलीफ को हम समझे और सावधानीपूर्वक विचार करें निराकरण करे तो हमारी तरक्की निश्चित है ।

हमें बोलने सुनने व्यवहार करने पढ़ने सभी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए श्रावक हो श्रमण सावधानी से ही चलना चाहिए, आज कहते हैं कि हमें टेंशन है , टेंशन का मतलब होता है मानसिक अवसाद डिप्रेशन मैंने कहा की इंटेंशन समझोगे तो टेंशन नहीं होगा। मूलगुण को मूल गुण के रूप में ही स्वीकार करो , जब भावों की निर्जरा होती है तभी मुक्ति होती है । कुंदकुंद आचार्य ने श्रावको के गुण और दायित्व बताएं उनका अध्ययन करो। अशांति को छोड़ दो तो जीवन मे शांति अवश्य मिलेगी।