आंधी चली गई और वह छोटा सा वृक्ष वापस अपने तने पर खड़ा हो गया। पहले बड़ा वृक्ष अहंकार से कहता था कि मेरे से ज्यादा बड़ा और बलशाली कौन हो सकता है। छोटे तने वाले वृक्ष को कई बार अपमान महसूस होता था। आंधी जाने के बाद छोटे वृक्ष ने बड़े वृक्ष से कहा कि अब तुम भी मेरी तरह उठकर खड़े हो जाओ। छोटे वृक्ष ने कहा कि मैं आपका उपहास नहीं उड़ा रहा, लेकिन जब कभी आवश्यक हो तो कमर झुकानी चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि हमेशा अहंकार के साथ रीढ़ कड़ी रखने से टूट जाती है। छोटे वृक्ष ने कहा कि आपके पास तो बड़ी-बड़ी जड़ें हैं। आप धरती का ज्यादा दोहन भी करते हो। तब बड़े वृक्ष ने कहा कि हम राहगीरों को छाया प्रदान करते हैं, इसीलिए ज्यादा ग्रहण करते हैं। लेकिन, ध्यान रखना होगा कि हमारी अकड़ जब निकल जाती है जब हमें महसूस होता है कि हम से भी ज्यादा बलशाली हमारे सामने है। हमारा सबसे बड़ा शत्रु प्रमाद है। हम बड़े वृक्ष से सीख ले सकते हैं, जो टूट गया लेकिन झुका नहीं। अहंकार ने उसे खत्म कर दिया। छोटे पौधे हमें पुरुषार्थ की शिक्षा देते हैं।