
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : गुस्से में बोले गए शब्द आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण नहीं
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आत्महत्या के मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि, गुस्से में कहे गए शब्दों या गाली को आत्महत्या उकसाने वाले शब्द नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने 2020 में एक व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपना फैसला सुनाया है।
आपको बता दें कि, वर्ष 2020 में दमोह जिले में रहने वाले मूरत लोधी नामक युवक ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। अपने सुसाइड नोट में मृतक ने 3 आरोपियों का नाम लिखा था। मृतक मूरत लोधी ने भूपेंद्र लोधी द्वारा लाठी से हमला और गाली-गलौज की बात लिखी थी। सुसाइड नोट में मूरत ने ये भी लिखा था कि, पथरिया थाने में इस संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराई थी और जब वो शिकायत दर्ज कराकर घर लौटे तो राजेंद्र लोधी और भानु लोधी ने समझौता करने के लिए उन पर दबाव बनाया। यही नहीं उस दौरान उन्होंने धमकी भी दी गई क्, अगर समझौता न किया तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने 3 आरोपियों को पकड़ा था
इसी सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने राजेंद्र, भूपेंद्र और भानू के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 और 34 के तहत मूरत को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर उनके खिलाफ कारर्वाई की थी।निचली अदालत में आरोप तय किए जाने के बाद तीनों आरोपियों ने अपने विरूद्ध लगे आरोपों को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिा लगाई।
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
मामले को लेकर जस्टिस सुजॉय पॉल की बेंच ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि, किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना एक 'मानसिक प्रक्रिया' है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा, 'गुस्से में कहे गए शब्द किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के खिलाफ आत्महत्या के आरोप के लिए उपयुक्त मामला नहीं बनता है। मौखिक रूप से दुर्व्यवहार या धमकी के बाद अगर व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है तो सुसाइड नोट के आधार पर आरोप तय नहीं किये जा सकते।' कोर्ट ने मामले में अंतिम निर्णय सुनाते हुए आरोपियों को बरी कर दिया है।
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Published on:
28 Dec 2022 03:42 pm
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