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Osho Ashram : तनावपूर्ण युग में ध्यान की आवश्यकता पहले से ज्यादा है

ओशो आश्रम में मां अमृत प्रिया व स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने कहा ओशो ने रेचन को ध्यान विधियों में जोड़ा

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Attention is needed more than ever in stressful times

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जबलपुर। आज के तनावपूर्ण युग में ध्यान की आवश्यकता पहले से ज्यादा हो गई है। पहले शिक्षा कम थी, मन में विचारों का प्रवाह कम था, लोगों के पास कम और सीमित जानकारी थी। उलझन, महत्वाकांक्षाएं भी कम थीं। इसके अनुपात में तनाव भी कम था। शारीरिक श्रम करना पड़ता था, जो तनाव से छुटकारा दिलाता था। जिंदगी निश्चित दिशा में गति करती थी। विकल्प नहीं थे इसलिए मन में चंचलता कम थी। तनाव की व्याधि क्रमश: बढ़ती ही गई है, तो औषधि की मात्रा भी बढ़ानी जरूरी है। इन बदलावों को देखते हुए अध्यात्म साधना के क्षेत्र में ओशो ने आधुनिक मनुष्य के लिए ध्यान विधियों में बहुत से परिवर्तन किए हैं। उन्होंने ध्यान की विधियों में रेचन को जोड़ा। ये बात मां अमृत प्रिया व स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने रविवार को ओशो आश्रम शैलपर्ण उद्यान में कही।

उन्होंने आगे कहा कि वैज्ञानिक की प्रयोगशाला बाहर होती है, वैसे ही ध्यानी की प्रयोगशाला भीतर है। दोनों हाइपोथेटिकल ट्रस्ट से खोज आरम्भ करते हैं। विज्ञान ऑब्जेक्ट की खोज करता है और ध्यान सब्जेक्ट की। दोनों की दिशाएं अलग हैं, लेकिन कार्यशैली समान है। सभ्यता-संस्कृति के विकास के साथ दमन भी बढ़ता गया। प्राचीन युग में कठोर शारीरिक परिश्रम से मन की ग्रंथियों का विसर्जन हो जाता था। लेकिन, आज की जीवन शैली में नहीं हो सकता।

ओशो की ध्यान विधियों में शरीर, मन, श्वासस, हृदय और चेतना का अनूठा संगम पाया जाता है। अन्यथा अधिकांश योगी आसन और प्राणायाम तक ही सीमित रह जाते हैं। ध्यान, समाधि के मंदिर में प्रवेश करना है, लोग सीढिय़ों पर अटके रह जाते हैं। ओशो ने सोपान और लक्ष्य की अखंडता को पुन: जीवित कर दिया। इस अवसर पर स्वामी अनादि अनंत, स्वामी संतोष आनंद भी मौजूद थे।