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कॉम्पीटेटिव एग्जाम में सफलता के लिए ये किताबें करेंगी मदद

ऑनलाइन से हटकर किताबों की ओर बढ़ा युवाओं का झुकाव  

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Examination Time table in mp board

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जबलपुर। डिजिटल के जमाने में युवा एक बार फिर से किताबों की ओर लौट गया है। इसका अंदाजा शहर की दुकानों में बिकने वाली किताबों से लगाया जा सकता है। कॉम्पिटेटिव एग्जाम का दौर शुरू हो गया है तो अब उम्मीदवार किताबों की खरीदारी की ओर लौट रहे हैं, वहीं वे अपनी रीडिंग हैबिट भी बढ़ा रहे हैं। किताबों के बीच टाइम स्पेंड किया जा रहा है। यही वजह है कि शहर की गांधी लाइब्रेरी में भी युवाओं की भीड़ पढ़ाई करने के लिए पहुंच रही है। वहां किताबों से ही पढ़ाई कर कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी की जा रही है। यह कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिलने वाले स्टडी एप्स, ऑनलाइन बुक्स मैटेरियल कुछ समय के लिए ही मददगार होते हैं, लेकिन यदि पढ़ाई के लिए असली क्रेडिबिलिटी की बात की जाए तो किताबों का काम किताबें ही करती हैं। शहर के तमाम बड़े बुक स्टोर में रोजाना किताबें खरीदने के लिए युवाओं की भीड़ पहुंच रही है।

गांधी लाइब्रेरी मेंअलग माहौल
शहर की गांधी लाइब्रेरी में इस वक्त अलग माहौल दिखाई दे रहा है। सुबह से लेकर शाम तक यहां युवाओं की भीड़ उमड़ रही है। यहां बैठकर पढ़ाई करने के लिए ज्यादा टाइम स्पेंड कर रहे हैं। कॉन्पिटिटिव एग्जाम की बुक्स लाइब्रेरी से लेकर के यहां घंटों पढ़ाई कर रहे हैं।

दुकानों में उमड़ रही भीड़
एक बुक स्टोर के संचालक मनीष बठेजा ने बताया कि पिछले चार-पांच सालों में ऐसा महसूस किया गया था कि डिजिटल बुक्स होने की वजह से या एप्स पर स्टडी मैटेरियल मिलने से युवाओं के बीच किताबों की मांग गुम हो जाएगी, लेकिन अब वापस से ही युवाओं का झुकाव किताबों की ओर हो गया है। इसका मुख्य कारण इंटरनेट पर विश्वसनीय परक कंटेंट ना मिलना है। जो कंटेंट मिलता है, उसका सोर्स भी पता नहीं होता है या कह सकते हैं कि इंटरनेट पर कंटेंट की भीड़ सी हो गई है, जिसकी वजह से अब यूजर्स कंफ्यूज हो रहे हैं। दुकानदारों की मानें तो डिजिटल बुक्स के कारण जो ग्राहकी टूटी थी, उसमें आधी प्रतिशत ग्राहकी वापस आ गई है। आम दिनों के मुकाबले दोगुने खरीदार हो गए हैं।

डिजिटल बुक या इंटरनेट स्टडी कंटेंट में कमियां
हिंदी के प्रो. डॉ. अरुण शुक्ला का कहना है कि इंटरनेट युवाओं की लाइफ का जरूरी हिस्सा बन गया है, लेकिन उसने मिलने वाले कंटेंट शतप्रतिशत नहीं होते हैं। जो काम किताबें करती हैं, वह काम इंटरनेट या एप्स नहीं कर सकते। इसके अलावा भी कई कमियां हैं। डिजिटल बुक आजकल पेड हो गया है। जिस वजह से भी रियल किताबों की ओर वापस से रुझान बढ़ गया है। इंटरनेट या मोबाइल पर किताबें पढऩा असुविधाजनक होता है। किताबें पढ़ लेने के बाद ही व्यक्ति को सही संतुष्टि मिलती है। इंटरनेट के कंटेंट की क्रेडिबिलिटी नहीं होती। इंटरनेट पर एक चीज के कई आस्पेक्ट खुलते हैं, जिससे यूजर कंफ्यूज होता है।

इन एग्जाम की तैयारी
एसएससी
यूपीएससी
बैंकिंग
रेलवे
पुलिस भर्ती

क्या कहतें हैं छात्र
सएससी की तैयारी कर रही हूं। कुछ एप्स डाउनलोड किए हैं, जिनकी समय-समय पर मदद लेती हूं, लेकिन पढ़ाई करने का सही आनंद किताबों से ही आता है।
शीतल रजक

ग्रेजुएशन के साथ ही पीएससी की प्रिपरेशन चल रही है। कोचिंग के नोट्स और किताबों से पढ़ाई हो रही है। कॉम्पिटेटिव एग्जाम के लिए इंटरनेट स्टडी पर भरोसा नहीं करता।
विमल साहू