कोरोना संक्रमण के चलते पहली दफा पंजाबी दशहरा नहीं मनाया गया। लंकाधिपति रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले नहीं जले। ग्वारीघाट स्थित आयुर्वेदिक कॉलेज मैदान में सार्वजनिक आयोजन नहीं हुआ। हालांकि इसकी घोषणा पंजाबी हिंदू एसोसिएशन ने पहले ही कर दी थी। ऐसे ही जबलपुर की रामलीला भी नहीं हुई।
वहीं एक साथ मां दुर्गा के विविध रूपों की झांकी भी नहीं निकलेगी जिसे देखने के लिए भक्त गण पूरी रात सड़कों पर जमा रहते थे। स्थानीय लोग बताते हैं कि विजया दशमी पर आयोजित होने वाले मुख्य चल समारोह की परंपरा लगभग 150 साल पुरानी है। इन डेढ़ सौ सालों में केवल तीन मौके ऐसे आए जब इसे स्थगित करना पड़ा। अंतिम बार 1964 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण सार्वजनिक आयोजन नहीं हुए थे। इस बार कोरोना ने फिर से लोगों को मायूस किया है।