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हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया विभागीय जांच और आपराधिक कार्रवाई में अंतर

रेलवे के लोको पायलट की याचिका निरस्त

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rajasthan high court : नाथद्वारा के जल स्रोतों की दयनीय हालत पर हाईकोर्ट खफा

rajasthan high court : नाथद्वारा के जल स्रोतों की दयनीय हालत पर हाईकोर्ट खफा

जबलपुर . मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान विभागीय जांच और आपराधिक कार्रवाई में अंतर स्पष्ट किया। न्यायाधीश राजेंद्र कुमार वर्मा की एकलपीठ ने रेलवे के लोको पायलट की आपराधिक प्रकरण निरस्त करने की मांग संबंधित याचिका निरस्त कर दी। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि किसी अनियमितता या फिर कर्त्तव्यों के उल्लंघन को गंभीरता से लेकर अनुशासन बनाए रखने की मंशा से विभागी जांच की जाती है। जबकि कानून का उल्लंघन किए जाने पर आपराधिक कार्रवाई होती है।

यह है मामला

कटनी निवासी रेलवे कर्मी प्रदीप कुमार यादव की तरफ से याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि वह रेलवे विभाग में लोको पायलट है। उसके विरुद्ध विभागीय जांच की गई, जिसमें दोषी पाते हुए दंडित भी किया गया था। इसके अलावा उसके खिलाफ चोरी का मामला भी विभाग ने दर्ज कराया था। यह मामला रेलवे मजिस्ट्रेट के समक्ष विचाराधीन है। जिसे निरस्त करने की मांग के साथ रेलवे मजिस्ट्रेट के समक्ष याचिका दायर की गई थी, जो निरस्त कर दी गई। इसलिए हाई कोर्ट की शरण ली गई है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि आपराधिक प्रकरण में अपराध साबित करने के लिए सबूत जुटाने का बोझ अभियोजन पर होता है। जबकि विभागीय जांच में आपराधिक कार्रवाई जैसी प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती। न्यायाधीश राजेंद्र कुमार वर्मा की एकलपीठ ने रेलवे के लोको पायलट की आपराधिक प्रकरण निरस्त करने की मांग संबंधित याचिका निरस्त कर दी। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि किसी अनियमितता या फिर कर्त्तव्यों के उल्लंघन को गंभीरता से लेकर अनुशासन बनाए रखने की मंशा से विभागी जांच की जाती है। जबकि कानून का उल्लंघन किए जाने पर आपराधिक कार्रवाई होती है।