
diwali pooja
जबलपुर। दीवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश का पूजन होता है। इस दौरान लोग सोना, चांदी, रुपया-पैसा सबकुछ भेंट करते हैं, लेकिन महाकोशल और बुंदेलखंड क्षेत्र में इन सबके साथ मिट्टी के बर्तनों वाले खिलौने और ग्वालिन को भी पूजन स्थल पर रखकर पूजा जाता है। इनके बिना पूजा को यहां के लोग अधूरा मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार यह परंपरा सदियों पुरानी है। वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शास्त्रों में इनके पूजन का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन लोक मान्यता के चलते लोग आस्थावश इनका पूजन करते चले आ रहे हैं।
सदियों पुरानी है दीवाली पर लक्ष्मी जी के साथ मिट्टी के बर्तनों और ग्वालिन की पूजा परंपरा
धन-धान्य का प्रतीक माने जाते हैं मिट्टी के बर्तन, ग्वालिन ने समानता का भाव बताया
इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार मिट्टी के बर्तनों और ग्वालिन की पूजा का उल्लेख 16 वीं से 17वीं शताब्दी के बीच मिलता है। ग्वालिन में सात, नौ दीपों की दीपमाला बनी रहती थी। चूंकि उस समय लक्ष्मी पूजन दीपों से होती थी, उसे दीप लक्ष्मी के नाम से जाना जाता था। इसे स्थानीय स्तर पर इन्हें ग्वालिन के नाम से जाना गया जो आज तक प्रचलित है। इसी तरह पहले धातुओं के बर्तन कम मिलते थे, लोग मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग करते थे, जिनमें पूजन सामग्री आदि रखकर पूजा की जाती थी। धीरे धीरे समय बदला लेकिन आधुनिकता के दौर में मिट्टी के बर्तनों की पूजा परंपरा बन गई जो अब तक चल रही है।
मिट्टी सबसे पवित्र तत्व
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ला ने बताया वैदिक युगों से मिट्टी के बर्तनों को महत्व दिया गया है, वे धन धान्य व स्वस्थ जीवन के प्रतीक माने गए हैं। शास्त्रों में मिट्टी सबसे पवित्र तत्व मानी गई है। हर पूजन में मिट्टी से बनी चीजों का उपयोग किया जाता है। दीवाली पर मिट्टी के बर्तनों को लाई, बताशा, सिंघाड़ा, मिठाई आदि फल फूल से भरकर मां लक्ष्मी को अर्पित किए जाते हैं। ताकि घर का भंडार सदा भरा रहे। यह लोग परंपरा सदियों से चली आ रही है। जिसे महाकोशल, बुंदेलखंड के लोग आज भी निभा रहे हैं।
Published on:
21 Oct 2022 11:24 am
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