
कुत्तों और इंसान के बीच लगातार संघर्ष बढ़ता जा रहा है। परिणामस्वरुप शहर में डॉग बाइट के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसके नियंत्रण के लिए कोई भी इंतजाम नहीं होने से स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। है। डॉग जीने के लिए संघर्ष कर रहें है तो वहीं मानव उनसे सुरक्षित रहने के लिए। एक तरह से दोनों के बीच आपदा जैसी स्थिति बनती जा रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर रोज 80 से 90 डॉग बाइट के केस सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। डॉग बाइट के शिकार केवल बच्चे ही नहीं बल्कि हर उम्र के लोग हो रहे हैं।
सीमित हुई इंजेक्शन व्यवस्था, 24 घंटे उपलब्धता नहीं
कुत्ते काटने की घटना बढऩे के साथ इंजेक्शन लगाने का दायरा भी बढऩा चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। उल्टा अब इंजेक्शन लगाने की व्यवस्था भी सीमित कर दी गई है। पहले तक जहां 24 घंटे इंजेक्शन लगाने की सुविधा जिला चिकित्सालय में उपलब्ध थी लेकिन अब केवल ओपीडी के समय तक सीमित कर दी गई है वह भी दोपहर 1 बजे तक। यदि इसके बाद किसी को इंजेक्शन लगवाना है तो लौटना पड़ता है।
40 हजार से अधिक आवारा कुत्ते
दो सालों से नसबंदी जैसे कार्यक्रम बंद होने के कारण भी शहर में कुत्तों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। 40 हजार से अधिक आवारा कुत्तों की फौज है । एक फीमेल डॉग एक बार में 2 से 4 तक बच्चे देती है जिससे इनकी संख्या भी बढ रही है। यही वजह है कि शहर के विभिन्न क्षेत्र में आवारा कुत्तों की फौज भी देखी जा रही है।
प्रभावित क्षेत्र
बाबा टोला, आधारताल, ग्वारीघाट, घमापुर, हनुमानतल, गुरंदी, मदारछल्ला, पान दरीबा, रद्दी चौकी, गढ़ा, देवताल, चारखंभा, कठौंदा, बसोर मोहल्ला, सिंधी कैम्प आदि
केस - 1
सूखा निवासी राजेश सोनी के 9 साल की बेटे को कुत्ते ने काट लिया, बेटे को 5 इंजेक्शन लगने हैं। गुरुवार को जिला अस्पताल पहुंचे लेकिन ओपीडी बंद थी। उन्होंने कहा कि इंजेक्शन की सुविधा हमेशा उपलब्ध होनी चाहिए।
केस - 2
8 साल के बेटे के साथ दवा खरीदने जा रही आधारताल निवासी मीना लखेरा के बेटे अनुराग पर एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया। रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए वे बेटे को लेकर जिला अस्पताल आई।
केस - 3
गुप्तेश्वर निवासी संतोष भी रैबीज इंजेक्शन लगाने के लिए आए थे। चिकित्सकों ने उन्हें छह इंजेक्शन लगाने के लिए कहा है।
रोक के कारण बिगड़ी स्थिति
जिला अस्पताल में रैबिज के इंजेक्शन लगाने के लिए खड़े लोग।
ननि की दलील है कि एनिमल वेलफेयर बोर्ड द्वारा कुत्तों के बंधियाकरण को लेकर आपत्ति लगा दी गई है जिसके कारण पिछले करीब दो सालों से इनके नियंत्रण पर काम नहीं हो रहा है। कुत्तों को पकडऩे के लिए संबंधित संस्था को पहले बोर्ड से पंजीयन कराना अनिवार्य है। जिसके चलते कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने अब तक कोई भी प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
इनका कहना है
कुत्तों की नसबंदी का काम अभी बंद है। एडब्ल्यूबीआई के नियमों के कारण इसमें कुछ दिक्कतें आई हैं। निगम द्वारा नियमों के तहत सभी आवश्यक व्यवस्थाएं पूरी कराई जा रही हैं। प्रस्ताव भेजा गया है। जल्द ही एजेंसी तय करने की कार्रवाई की जाएगी।
- भूपेंद्र सिंह, स्वास्थ्य अधिकारी ननि
कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण न होने के कारण इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। बढ़ते शहरीकरण के कारण भी मानव और कुतों के बीच संघर्ष बढ़ा है। जिसकी वजह से भी इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- डॉ. ओपी श्रीवास्तव, पशु चिकित्सक
Updated on:
10 Feb 2024 10:39 am
Published on:
10 Feb 2024 10:35 am
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