
guru poojan
जबलपुर. त्रेता युग में भगवान राम और द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने भी गुरु वंदना की थी और धर्म, न्यास सहित अन्य विधाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। किसी भी युग में गुरु के सानिध्य बिना कोई भी शिष्य सफल नहीं हो सकता है। महाभारत काल में एकलव्य का उदाहरण सर्वोपरि है, जिसने कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखने जाता है, लेकिन शूद्र वर्ण का होने के कारण गुरु द्रोण उसे विद्या देने के मना कर देते हैं। इसके बाद एकलव्य ने गुरु द्रोण की प्रतिमा बनाकर उनके सानिध्य में धनुर्विद्या में निपुण हो जाता है। गुरु की महिमा अपार है। वर्तमान समय में भी हर सफल व्यक्ति गुरु से मिले ज्ञान से ही कीर्ति और यश पाता है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाते हैं गुरुपूर्णिमा
आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन गुरु वंदना का शास्त्रों में विधान है। वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। आषाढ़ पूर्णिमा से चार माह तक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर चातुर्मास करते हैं। चातुर्मास स्थल पर आसपास के लोगों को साधु-संतों से ज्ञानार्जन करने का मौका मिलता है। इस समय मौसम बारिश का दौर शुरू होने से न अधिक गर्म रहता है और अधिक ठंडा। यह मौसम विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनुकूल होता है। गुरु ही हैं, जो साधक या शिष्य को भगवान तक पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। सूर्यदेव की किरणों से गर्म भूमि को वर्षा से शीतलता की प्राप्ति होती है। वैसे ही गुरुजनों के वंदन से शिष्यों को ज्ञान, शांति और भक्ति रूपी शक्ति की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन है। उन्होंने ही चारों वेदों ऋगुवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की थी। वेदों की रचना करने के कारण उनका नाम वेद व्यास भी है। उन्हे आदिगुरु कहा जाता है, उनके सम्मान में गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार गुरु का अर्थ होता है अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य के अज्ञानता को दूर कर प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करता है। इसलिए गुरु वंदनीय हैं।
बुलंदियों तक पहुंचने गुरु जरूरी
साधक या शिष्य के लिए जिस प्रकार आराध्य के वंदन की जरूरत होती है, वैसे ही गुरु के अर्चन की आवश्यकता होती है। क्योंकि बिना गुरु के ज्ञान मिल पाना असंभव है। साधक के लिए भगवान और गुरु समान हैं। गुरु के माध्यम से भगवान तक भी पहुंचा जा सकता है।
सभी के लिए गुरु सर्वोपरि
गुरु, गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय। जब गुरु और ईश्वर दोनो समक्ष हों तो पहले गुरु की वंदना का विधान है। गुरु ही है जो साधक को ईश्वर से भी साक्षात्कार करा सकता है।
इस बार गुरुपूर्णिमा पर चंद्रग्रहण
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला के अनुसार इस बार गुरुपूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण पड़ रहा है। इसलिए शाम 4 बजे से सूतक लग जाएगा। इसके कारण गुरुवंदन का समय सुबह से 4 बजे तक ही रहेगा।
Published on:
25 Jun 2019 08:14 pm
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