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खालसा पंथ में नहीं कोई छोटा-बड़ा, धूमधाम से मनाई बैशाखी- देखें वीडियो

खालसा पंथ में नहीं कोई छोटा-बड़ा, धूमधाम से मनाई बैशाखी- देखें वीडियो  

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Khalsa Panth celebrated Baisakhi

Khalsa Panth celebrated Baisakhi

जबलपुर. बैशाखी पर्व संस्कारधानी में धूमधाम के साथ मनाया गया। शहर के सभी गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन दरबार सजे। सिख संगत ने गुरुग्रंथ साहब को मत्था टेका और गुरु का लंगर छका। गुरुद्वारा प्रेमनगर मदनमहल में मुख्य आयोजन हुआ। जहां प्रसिद्ध कथावाचक भाई बचित्तर सिंह ने कहा खालसा पंथ के संस्थापक दशमेश पिता गुरू गोविन्द सिंह केवल आदर्शवादी ही नहीं थे, बल्कि वे एक आध्यात्मिक गुरु भी थे। समूचे पंथ को उन्होंने अमृत की पाहुल बख्श के अलौकिक शक्ति का संचार कर उपदेश दिया कि खालसा पंथ में ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं।

उन्होंने कहा सभी एक स्वरूप हैं।खालसा का एक ही धर्म है कि देश तथा मानव जाति के रक्षार्थ अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दें। उन्होंने अपने अनुयायियों को प्राचीन परम्पराओं से नहीं बांधा, बल्कि उन्हें आध्यात्मिकता व सेवाभाव के प्रति मार्गदर्शित किया।

मत्था टेकने को कतार

श्री गुरु सिंघ सभा प्रेमनगर के तत्वावधान व समस्त साध संगत के सहयोग से श्रद्धा, भक्ति व उल्लास के साथ पर्व मनाया गया। सिखों के साथ अन्य समाज व धर्म के लोग शामिल हुए। लोगों ने एक दूसरे को बधाईयां दीं। गुरु ग्रंथ साहिब को मत्था टेकने लगी भक्तों की लंबी कतारें कार्यक्रम के समापन तक जारी रहीं। इस मौके पर अनेक कीर्तनी जत्थों ने सिख इतिहास व इलाही वाणी से संगत को निहाल किया। पंज प्यारों के संरक्षण में अमृतपान किया गया।

गुरुद्वारे आने वाले लोगों का संगत ने जयकारों से स्वागत किया। आयोजकों ने कार्यक्रम में पहुंचे जनप्रतिनिधि व सेवादारों का सिरोपा भेंट कर सम्मान किया। गुरू के अटूट लंगर दिन भर जारी रहे। आयोजन के समापन पर ग्रंथी द्वारा समस्त मानवता के कल्याण की अरदास संपन्न कर प्रसाद का वितरण किया गया। मंच संचालन व आभार प्रदर्शन सचिव रणजीत सिंह भमरा ने किया।

दिन भर बंटी छबील

सेवाभावी सिख युवाओं ने शहर भर में जगह-जगह ठंडी छबील के स्टाल लगाए। ठंडाई युक्त मीठे पेय के लिए गर्मी के मौसम में लोगों की कतारें लगीं। छबील के स्टाल सारा दिन चलते रहे। शहर के सभी गुरुद्वारों में गुरु के अटूट लंगर चले। सिख संगत के साथ अन्य लोगों ने भी गुरु का लंगर प्रसाद ग्रहण किया। गुरुद्वारों में देर रात तक गुरुवाणी, शबद कीर्तन गूंजते रहे।