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कनाडा से तकनीक सीखकर आए और गुरुद्वारे में लगाया मध्यप्रदेश में सबसे ऊंचा निशान साहब

आस्था के अनेक रंग हैं। ऐसा ही आस्था का एक अद्भुत रंग संस्कारधानी के ग्वारीघाट गुरुद्वारे के निशान साहब में देखने को मिलता है। नगर के एक बुजुर्ग ने अपनी कनाडा यात्रा के दौरान वहां के एक गुरुद्वारे में हाइड्रोलिक सिस्टम से चढ़ने-उतरने वाला निशान साहब लहराते देखा। उन्होंने ठान लिया कि ऐसा ही निशान साहब वे शहर में भी लगाएंगे। मेहनत से मंसूबे साकार हुए और उन्होंने ग्वारीघाट गुरुद्वारे में मध्यप्रदेश का सबसे ऊंचा 100 फिट का केसरिया निशान साहब स्थापित कर दिया।

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nishan saheb

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रविवार को ग्वारीघाट गुरुद्वारे में होगी कारसेवा
जबलपुर।
आस्था के अनेक रंग हैं। ऐसा ही आस्था का एक अद्भुत रंग संस्कारधानी के ग्वारीघाट में नर्मदा जी के उस पार स्थित गुरुद्वारे के निशान साहब में देखने को मिलता है। नगर के एक बुजुर्ग ने अपनी कनाडा यात्रा के दौरान वहां के एक गुरुद्वारे में हाइड्रोलिक सिस्टम से चढ़ने-उतरने वाला निशान साहब लहराते देखा। उन्होंने ठान लिया कि ऐसा ही निशान साहब वे शहर के गुरुद्वारे में भी लगाएंगे। मेहनत से मंसूबे साकार हुए और उन्होंने ग्वारीघाट गुरुद्वारे में मध्यप्रदेश का सबसे ऊंचा 100 फिट का केसरिया निशान साहब स्थापित कर दिया। नर्मदा तट पर शान से सीना ताने खड़े केसरिया निशान साहब की हर साल कारसेवा होती है। रविवार 5 मार्च को ग्वारीघाट गुरुद्वारे में इस निशान साहब की सेवा के लिए सिख समाज के लोग जुटेंगे।


सारा सामान यहीं बनाया-
राधास्वामी सत्संग व्यास के समीप हाथीताल निवासी बुजुर्ग भूपिंदर सिंह बमराह ने यह निशान साहब बनाकर गुरुद्वारा ग्वारीघाट में स्थापित कराया है। वे बताते हैं कि 2007 में वे कनाडा भ्रमण के लिए गए थे। वहां उन्होंने एक गुरुद्वारे में ऐसा निशान साहब देखा। यह हाइड्रोलिक सिस्टम पर आधारित था। वहां से भारत वापस आने के बाद उन्होंने जबलपुर में ही इसकी ड्राइंग तैयार की। इसमे लगने वाला सारा सामान उन्होंने यहीं बनाया।हालांकि, इसके लिए उन्हें दिल्ली व गुजरात से कुछ कलपुर्जे लाने पड़े, लेकिन उन्हें यहीं असेंबल किया गया।
एक साल का समय लगा-
भूपिंदर सिंह ने बताया कि निशान साहब तैयार करने में करीब एक साल का समय लगा। एक-एक पार्ट तैयार करने में हफ्तों का समय लगता था। अंततः दो लाख रु की लागत से यह 2009 में तैयार हुआ। 14 जून 2009 को उन्होंने अपने पिता स्व. चरण सिंह की स्मृति में यह निशान साहब ग्वारीघाट गुरुद्वारे में समर्पित कर दिया।।
शहर में चार लगाए, बाहर भी-
सरदार भूपिंदर सिंह ने बताया कि ग्वारीघाट में हाइड्रोलिक सिस्टम पर आधारित निशान साहब लगाने के बाद उन्होंने गुरुद्वारा मदनमहल में भी अपनी माता की स्मृति में ऐसा ही निशान साहब लगवाया। इसके बाद उन्हें प्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों से भी ऐसे निशान साहब बनाने के आग्रह किये गए। शहर में वे अब तक ग्वारीघाट के दो गुरुद्वारे, बिलहरी व मदनमहल गुरुद्वारे के निशान साहब बना चुके हैं। इसके अलावा जमशेदपुर बिहार में 6, बिलासपुर छग में एक, शहडोल,मण्डला, बालाघाट व छतरपुर में भी ऐसे निशान साहब बनाकर दे चुके हैं।

समय-समय पर होती है सेवा-
निशान साहिब खालसा पंथ का परंपरागत प्रतीक है। काफ़ी ऊंचाई पर फ़हराए जाने के कारण निशान साहिब को दूर से ही देखा जा सकता है। किसी भी जगह पर इसके फहरने का मतलब वहां खालसा पंथ की मौजूदगी होती है । सरदार जसविंदर सिंह कोहली ने बताया कि पर्वों के अलावा समय समय पर इसे नीचे उतारा जाता है, फिर नए ध्वज से बदल दिया जाता है। सिख इतिहास के प्रारंभिक काल में निशान साहिब की पृष्ठभूमि लाल रंग की थी। फ़िर इसका रंग सफ़ेद हुआ और फिर केसरिया। 1609 में पहली बार गुरु हरगोबिंदजी ने अकाल तख़्त पर केसरिया निशान साहिब फहराया था। निशान साहिब की मौजूदगी इस बात का प्रतीक है कि हर सिख और कोई भी व्यक्ति उस भवन में प्रवेश करने के लिए स्वतंत्र है। बेफ़िक्र होकर ईश्वर की आराधना कर सकता है। सिख समाज में निशान साहिब का बहुत सम्मानित स्थान है। इसे बहुत इज़्ज़त के साथ रखा जाता है।