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mahashivratri 2025 : त्रेता युग में भगवान राम ने स्थापित किया था ये शिवलिंग, मप्र के इस जिले में आज भी हैं महादेव

mahashivratri 2025 : त्रेता युग में भगवान राम की उत्तर से दक्षिण तक की यात्रा काल का वर्णन पुराणों में आता है, कोटि रूद्र संहिता में प्रमाण है

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mahashivratri 2025

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mahashivratri 2025 : भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जब सीता माता की खोज में निकले थे तब एक बार वे मां नर्मदा तट पर भी आए हुए थे। पुराणों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम को जाबालि ऋषि से मिलने की इच्छा हुई तो वे संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट पर आए थे। इसी दौरान उन्होंने अपने आराध्य महादेव का पूजन वंदन किया था। जिसके लिए रेत से शिवलिंग का निर्माण किया। जो आज गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। गुप्तेश्वर पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी मुकुंददास ने बताया कि त्रेता युग में भगवान राम की उत्तर से दक्षिण तक की यात्रा काल का वर्णन पुराणों में आता है। कोटि रूद्र संहिता में प्रमाण है कि रामेश्वरम् के उपलिंग स्वरूप हैं गुप्तेश्वर महादेव।

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mahashivratri 2025 : 1890 में चरवाहे ने देखा सबसे पहले

पुजारी योगेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि मंदिर सन् 1890 में अस्तित्व में आया। पहाड़ होने के कारण इस क्षेत्र में चरवाहों का आना-जाना था। गुफा का मुख्य द्वार एक बड़ी चट्टान से ढंका था। जब लोगों ने इसे अलग किया तो गुप्तेश्वर महादेव के दर्शन हुए। सावन में यहां प्रतिदिन भगवान का अभिषेक और श्रृंगार किया जाता है। जानकारों व संत महंतों के अनुसार जाबालि ऋषि की तपोस्थली रहा जबलपुर शहर ऐतिहासिक ही नहीं पौराणिक महत्व भी रखता है। यहां के नर्मदा तटों का हर कंकर शंकर कहलाता है। यहां स्वय सिद्ध महादेव विविध रूपों में विविध नामों से विद्यमान हैं। शास्त्रों के अनुसार गुप्तेश्वर महादेव को रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग का उपलिंग भी माना गया है।

mahashivratri 2025 : पुराणों में मिलते हैं प्रमाण

गुप्तेश्वर पीठाधीश्वर स्वामी मुकुंददास महाराज ने बताया कि पुराणों के अनुसार जब भगवान श्रीराम, अनुज लक्ष्मण के साथ संत सुतीक्षण के आश्रम से विदा लेते हैं तब वे महर्षि जाबालि ऋषि को न पाकर उन्हें खोजने निकल पड़ते हैं। नर्मदा के उत्तर तट पर एकांतवास में तपस्यारतï जाबालि ऋषि को प्रसन्न करने व आशीष देने के लिए भगवान यहां आए थे।

mahashivratri 2025 : एक माह का गुप्तवास भी बिताया

श्रीराम ने यहीं नर्मदा तट पर एक माह का गुप्तवास भी बिताया है। इस दौरान भगवान श्रीराम ने रेत से शिवलिंग बनाकर अपने प्रिय आराध्य का पूजन किया था। जो वर्तमान में गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मतस्य पुराण, नर्मदा पुराण, शिवपुराण, बाल्मिकी रामायण, रामचरित मानस व स्कंद पुराण में जिस गुप्तेश्वर महादेव के प्रमाण मिलते हैं।

mahashivratri 2025 : संरक्षित किया, बताया महत्व

अपै्रल 1990 में साकेतवासी स्वामी रामचंद्रदास महाराज ने गुप्तेश्वर महादेव की ख्याति जन-जन तक पहुंचाने और गुफा को संरक्षित करने का विचार किया। उनहोंने गणमान्य नागरिकों को साथ लेकर स्वामी श्यामदास महाराज की अध्यक्षता में एक ट्रस्ट का गठन किया और स्वामी मुकुंददास महाराज को गुप्तेश्वर महादेव मंदिर का पीठाधीश्वर नियुक्त किया। इसके बाद गुप्तेश्वर महादेव में होने वाले विविध आयोजनों से इसकी ख्याति बढ़ गई। गुप्तेश्वर महादेव के दरबार में शिवरात्रि, सावन माह के अलावा पूरे वषज़् विभिन्न अवसरों पर आयोजन होते रहते हैं।