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#MPHighcourt हाईकोर्ट ने 2624 वकीलों के अवमानना मामलों को खारिज किया

हड़ताल के मामले में नसीहत, बार और बेंच न्याय प्रदान करने के भागीदार, अदालतों में पेश होने से परहेज का कृत्य घातक- मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद के पदाधिकारियों व ऑफिस बियरर के मामलों की चार सप्ताह बाद सुनवाई जबलपुर न्यायिक आदेश के बाद न्यायालयीन कार्य से विरत रहने वाले अधिवक्ताओं के खिलाफ दर्ज किए गए अवमानना मामलों पर मध्यप्रदेश हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने अधिवक्ताओं के खिलाफ शुरू की गई स्वत: संज्ञान अवमानना कार्यवाही के 2624 मामलों और 1938 कारण बताओ नोटिस को खारिज कर दिया।

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 मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद के पदाधिकारियों व ऑफिस बियरर के मामलों की चार सप्ताह बाद सुनवाई

MP Highcourt Jabalpur

मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने पाया कि वकीलों की ओर से व्यक्तिगत स्तर पर जानबूझकर कोई अवज्ञा नहीं की गई थी। उन्होंने अदालत के आदेश की बजाय स्टेट बार काउंसिल की ओर से जारी निर्देश का पालन किया था, जो इसके विपरीत थे। यह मामला मार्च 2023 में 25 लंबित मामलों के त्वरित निराकरण के लिए शुरू की गई एक योजना के विरोध से जुड़ा हुआ है। जिसको लेकर अदालतों से अधिवक्ता गैरहाजिर रहे थे और हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर चेतावनी दी थी और फिर अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी।

हाई कोर्ट की पीठ ने यह नसीहत भी दी कि विरोध स्वरूप वकीलों द्वारा अदालतों में पेश होने से परहेज करने जैसे कृत्य घातक हैं। अदालत के अनुसार, बार और बेंच 'न्याय प्रदान करने में भागीदार' हैं, इसलिए एक संस्था द्वारा दूसरे के खिलाफ विरोध का कोई भी कार्य संस्था के लिए हानिकारक होगा। कोर्ट ने कहा, न्यायालय के अधिकारी होने के नाते वे और अधिवक्ता न्यायालय की गरिमा और मर्यादा की रक्षा करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं। यदि किसी अधिवक्ता द्वारा न्यायिक आदेश की अवहेलना की जाती है, तो यह बार और बेंच के बीच विश्वास को प्रभावित करता है। अवज्ञा के ऐसे कृत्य संस्था के मूल ढांचे को प्रभावित करते हैं।

एसोसिएशन ने पेश किए थे हलफनामे
इस मामले में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन जबलपुर के अध्यक्ष संजय वर्मा द्वारा दायर हलफनामे में हड़ताल की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए बिना शर्त माफी मांगी गई थी और सदस्यों को हुई दुविधा का विस्तृत विवरण दिया। ऐसा ही हलफनामा एडवोकेट्स बार एसोसिएशन जबलपुर के अध्यक्ष अनिल खरे की ओर से भी पेश किया गया। उन्होने न्यायालय से निवेदन किया था कि व्यक्तिगत तौर पर अधिवक्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता। दायर हलफनामों को पढऩे के बाद, अदालत ने कहा कि इसे देखकर जानबूझकर की गई किसी अवज्ञा का संकेत नहीं मिलता है। बल्कि न्यायिक आदेश की तुलना में स्टेट बार काउंसिल के निर्देशों का पालन करने को लेकर उठे मानसिक द्वंद को दर्शाता है।

बार काउंसिल के मामले पर होगी सुनवाई
हाई कोर्ट ने अधिवक्ताओं पर व्यक्तिगत तौर पर चलाए गए अवमानना मामलों और कारण बताओ नोटिस को खारिज कर दिया है। वहीं स्टेट बार काउंसिल से जुड़े मामलों पर अगले चरण में विचार किया जाएगा। जिसकी सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।