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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इस आदेश से प्रशासनिक महकमे में मचा हड़कंप, जानें क्या कहा कोर्ट ने…

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की एकलपीठ का है आदेश

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High Court of Madhya Pradesh

High Court of Madhya Pradesh

जबलपुर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई के मामले में ब्यूरोक्रेट्स पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट के इस आदेश के बाद प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया है। यह आदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की एकलपीठ ने दिया है।

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की एकलपीठ मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में मैनेजर को अतिरिक्त तहसीलदार के कार्यालय में स्थानांतरित करने के मामले पर कंपनी के अधिकारियों को जमकर लताड़ लगाई। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि नौकरशाही की शक्तियां प्रशासन के सुगम संचालन के लिए हैं, किसी कर्मचारी से बदला लेने के लिए नहीं। लिहाजा, चेतावनी दी जाती है कि भविष्य में इस तरह बदले की कार्रवाई के तहत किसी कर्मचारी को परेशान करने के लिए शक्ति का दुरुपयोग हर्गिज न किया जाए। फिलहाल, कर्मचारी का मनमाना तबादला निरस्त किया जाता है। साथ ही मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत शिवराज धुर्वे की ओर से यह याचिका दायर की गई थी जिसमें बताया गया था कि याचिकाकर्ता का तबादला 13 फरवरी 2019 को बैतूल से शाहपुर किया गया। डेढ़ साल के अंदर ही 8 जून 2020 को याचिकाकर्ता को पुनः शाहपुर से बैतूल स्थानांतरित कर दिया गया। इतना ही नहीं याचिकाकर्ता को बैतूल में अतिरिक्त तहसीलदार के कार्यालय में भेजा गया। याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि वह विद्युत वितरण कंपनी का कर्मचारी है और उसे राजस्व विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि विभाग परिवर्तित करने पर याचिकाकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए थी और विधिवत प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाना चाहिए था।

यह भी दलील दी गई कि याचिकाकर्ता ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार किया था। इससे नाराज होकर मेरा तबादला किया गया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का स्थानांतरण वास्तव में नियम विरुद्घ हुआ है । अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने उक्त स्थानांतरण आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही अनावेदक कंपनी के अधिकारियों पर 50 हजार रुपये की कॉस्ट लगा दी। हाई कोर्ट ने विभाग को दोषी अधिकारी के वेतन से राशि की कटौती की भी स्वतंत्रता दी है।