यह है मामला
हरदा निवासी जयराम ने अपील दायर की थी। इसमें कहा गया कि सन् 2004 में हरदा के एक अधिवक्ता ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। उनकी मृत्यु से पूर्व नायब तहसीलदार द्वारा बयान दर्ज किए गए । लेकिन न्यायालय में जो बयान पेश किए गए उनमें नीचे की 3 लाइन को अलग से जोड़ी गई थीं। इनमें लिखा था कि जयराम ने मेरी एलएलबी की डिग्री और मार्कशीट चुराकर ले गया था। उसके बाद से मुझे 20 हजार रुपए की मांग की जा रही थी और न देने पर 376 के मामले में फंसाने की धमकी दी जा रही थी। इसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी मानते हुए 5 साल की सुनाई थी। मृतक ने आत्महत्या से पहले एक सुसाइट नोट भी लिखा था। जो जांच के दौरान पुलिस को मिला। इस के आधार पर पुलिस ने जयराम को आरोपी बनाया था। तर्क दिया गया कि पुलिस ने सुसाइड नोट की जांच हैण्डराईटिंग एक्सपर्ट से नहीं कराई, बल्कि अधिवक्ता के जूनियर द्वारा हैण्डराइटिंग की पहचान करवाई गई थी।
एफआईआर क्यों नहीं कराई दर्ज
कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ता ने एलएलबी की पढ़ाई की थी। यदि उसे धमकी मिल रही थी तो उसने पुलिस में एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि उसे धमकाया जा रहा था। हाईकोर्ट ने जूनियर की गवाही को भी इस आधार पर अमान्य कर दिया कि जूनियर की बात सही नहीं मानी जा सकती है।
पढ़े-लिखे का अंगूठा नहीं मान्य
कोर्ट ने सरकारी वकील से पूछा कि बयान में अधिवक्ता के साइन क्यों नहीं लिए गए तो उन्होंने कहा कि उसके हाथ में ड्रिप लगी थी। इसलिए हस्ताक्षर नहीं कराए जा सके। कोर्ट ने तर्क को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वकील पढ़ा लिखा था। इसलिए उसके अंगूठे का निशान मान्य नहीं होगा।