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navratri 2021: 52 शक्तिपीठों में शामिल है ये देवी मंदिर, बड़े बड़े तांत्रिक करते हैं साधना

52 शक्तिपीठों में शामिल है ये देवी मंदिर, बड़े बड़े तांत्रिक करते हैं साधना  

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badi khermai mandir

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जबलपुर। मां भगवती की 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख गुप्त शक्तिपीठ शहर के भानतलैया स्थित बड़ी खेरमाई मंदिर का लिखित इतिहास कल्चुरी काल का लगभग 800 वर्ष पुराना है। लेकिन उसके पूर्व भी शाक्त मत के तांत्रिक और ऋषि मुनि अनंतकाल से यहां शिला रूपी मातारानी की आराधना करते थे। यह मंदिर क्षेत्रीय आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। शक्ति की तंत्रसाधना के लिए मंदिर की ख्याति रही है।

संग्रामशाह ने स्थापित की थी प्रतिमा
मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनि त्रिवेदी ने बताया कि मंदिर में पहले प्राचीन प्रतिमा शिला के रूप में थी जो वर्तमान प्रतिमा के नीचे के भाग में स्थापित है। उन्होंने बताया कि एक बार गोंड राजा मदनशाह मुगल सेनाओं से परास्त होकर यहां खेरमाई मां की शिला के पास बैठ गए। पूजा के बाद उनमें नया शक्ति संचार हुआ और राजा ने मुगल सेना पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया। 500 वर्ष पूर्व गोंड राजा संग्रामशाह ने मढिय़ा की स्थापना कराई थी।

IMAGE CREDIT: lali koshta

गांव-खेड़ा की रक्षक हैं माता
मंदिर के पहले के समय में गांव-खेड़ा की भाषा प्रचलित थी। पूरा क्षेत्र गांव के जैसे था। खेड़ा से इसका नाम धीरे-धीरे खेरमाई प्रचलित हो गया। शहर अब महानगर हो गया है, लेकिन आज भी मां खेरमाई का ग्राम देवी के रूप में पूजन किया जाता है।

सोमनाथ के कारीगरों ने बनाया मंदिर
वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिवेदी ने बताया कि वर्तमान मंदिर गौंड़ शासक मदन शाह द्वारा स्थापित प्रतिमाओं के आराधना स्थल पर पूर्व मंदिर की जगह प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का निर्माण करने वाले शिल्पियों द्वारा निर्मित भव्य मंदिर है। मंदिर में जवारा विसर्जन की परम्परा भी वर्ष 1652 की चैत्र नवरात्र में शुरू हुई थी। इस बार जवारा विसर्जन का 369वां वर्ष है।

हाईटेक है मंदिर की सुरक्षा
सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर में हाइटेक तकनीक अपनाई गई है। यहां 27 सीसीटीवी द्वारा हर आने-जाने वाले पर नजर रखी जाती है।
मंदिर में मुख्य पूजा वैदिक रूप से होती है। यहां दोनों नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी और नवमी को रात में मातारानी की महाआरती की जाती है। जिसमें शामिल होने के लिए कई शहरों से लोग पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार नवरात्र के दिनों में यहां मां के नौ रुपों में श्रंगार किया जाता है। इस बार कोरोना को देखते हुए जवारा जुलूस भी सांकेतिक रहने की सम्भावना है।